नहीं रहे चर्चित कवि 'मिथिलेश मधुकर' जिले में शोक की लहर

नहीं रहे चर्चित कवि 'मिथिलेश मधुकर' जिले में शोक की लहर

औरंगाबाद के चर्चित कवि और जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री मिथिलेश मधुकर का सोमवार को सुबह औरंगाबाद के न्यू एरिया स्थित आवास पर निधन हो गया।इधर कुछ दिनों से वे अस्वस्थ चल रहे थे।उनके निधन से मगध क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है।उनके निधन पर जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, समकालीन जवाबदेही, बतकही परिवार ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है और साहित्य जगत के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है।इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. कुमार वीरेंद्र ने कहा कि मधुकर जी की कविताएं वज़नी थीं और अनछुए विषयों पर केन्द्रित थी।उन्होंने गौतम बुद्ध की उस मनःस्थिति को आधार बनाकर बोधिसत्व नामक एक कविता पुस्तक लिखी,जिसमें बुद्ध के गृह त्याग के समय की कश्मकश रेखांकित है।उन्होंने गीता दर्शन को आधार बनाकर 'स्वयमेव' नामक कविता पुस्तक लिखी,जिसमें आधुनिक जीवन के गहरे बिम्ब हैं।
जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि औरंगाबाद में हिंदी साहित्य सम्मेलन का श्रेय मधुकर जी को ही जाता है।उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से गोष्ठियां आयोजित कर और विभिन्न पुस्तकों का प्रकाशन कर एक साहित्यिक वातावरण की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
समकालीन जवाबदेही के संपादक डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि शब्द के चितेरे के तीन भागों का संपादन कर मधुकर जी ने जिले का साहित्यिक इतिहास तैयार किया था। वे शब्द के चितेरे के चौथे खण्ड के लिए काफ़ी सामग्री संगृहीत कर चुके थे।युवा कवि धनञ्जय जयपुरी ने कहा कि वे मेरे साहित्यिक गुरु थे।मैंने उनसे कविता का ककहरा और छंदों की बारीकियों को सीखा।भूगोलवेत्ता डॉ. रामाधार सिंह ने कहा कि मधुकर जी ने नये लेखकों को ख़ूब प्रोत्साहित किया और उनकी प्रेरणा से कई लोगों ने साहित्यिक पुस्तकें लिखीं।गणित के अध्यापक डॉ. शिवपूजन प्रसाद सिंह ने कहा कि मधुकर जी मंदाकिनी नामक साहित्यिक पत्रिका भी निकालते थे और इस पत्रिका के कुछ अंको के माध्यम से उन्होंने समकालीन रचना शीलता को एक बड़े पाठक वर्ग तक पहुंचाया ।नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. हनुमान राम ने कहा कि मधुकर जी की प्रेरणा से ही मैंने कहानियां व कविताएं लिखी जो पुस्तक रूप में प्रकाशित होने वाली हैं।उनके निधन से एक साहित्यिक ख़ालीपन पैदा हुआ है।ज्योतिर्विद शिवनारायण सिंह ने कहा कि मधुकर जी विज्ञान के शिक्षक होते हुए भी हिंदी कविता की गहरी समझ रखते थे।डॉ सी.यस पांडेय,रमेश मिश्र ,पुरुषोत्तम पाठक,चंद्रशेखर साहू,नागेंद्र केशरी,प्रभात बांधूल्य,आशुतोष रंजन,जयप्रकाश सिंह आदि ने मधुकर जी के निधन को साहित्यिक जगत के लिए अपूर्णीय क्षति बताया। उल्लेखनीय है कि मिथिलेश मधुकर का जन्म औरंगाबाद जिले के देवप्रखंड के अंतर्गत सरैया नामक गाँव में 1 जनवरी 1954 ई. को हुआ था।वह अपने पीछे तीन पुत्रों का भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।
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