परदेशी न्यू ईयर पर भी हम बोलते हैप्पी

परदेशी न्यू ईयर पर भी हम बोलते हैप्पी

(हृदयनारायण दीक्षित-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अंग्रेजी नववर्ष मुझे उल्लास नहीं देता। मन बार-बार सोचता है कि 365 दिन के वर्ष को हम जनवरी से ही क्यों प्रारंभ करें? जनवरी माह में भारत में कोई नया रूपक नहीं खिलता। न कृषि में, न समाज में, न हमारी प्रकृति में। जनवरी की हवायें भी प्रीतिपूर्ण स्पर्श नहीं देती है। वनस्पतियां भी शीत के कारण सिकुड़ी रहती है। हवाओं में मधु नहीं होता। प्रकृति में नवछन्द भी नहीं उगते। जनवरी में सौन्दर्यबोध नहीं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। वैदिक साहित्य में वर्ष के 720 अहो रात्र की चर्चा है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 720 अहो रात्र में करती है। अहो रात्र दिन-रात के जोड़े को कहते हैं। 720 अहो रात्र मिलकर वर्ष बनते हैं। पृथ्वी परिक्रमा प्रकृति का नियम है। भारतीय परंपरा में वर्ष की काल गणना चैत्र माह की प्रतिप्रदा से होती है। हैप्पी न्यू ईयर का भारतीय परंपरा से कोई लेना-देना नहीं है।

खुमारी के प्रभाव में आलस्य भी होता है। आधी नींद और आधा जागरण साथ साथ चले तो खुमारी। ईसा के नववर्ष पर कहीं दारू भी जमकर चली। आज नववर्ष का दूसरा दिन है। कल से आज तक हैप्पी न्यू ईयर की शुभकामनाएँ जारी हैं। हैप्पी बोलने का अपना मजा है और सुनने का भी। अंग्रेजी न्यू ईयर आधुनिकता का प्रतीक है। यह न्यू ईयर परदेशी है। कुछ लोग विदेशी जीवन शैली को आधुनिकता कहते हैं। कुछ बरस से हमारे गांव, देहात के भी कुछ लोग हैप्पी न्यू ईयर बोल रहे हैं। हम भारत के लोग उत्सव प्रेमी हैं। विदेशी परंपरा के न्यू ईयर को भी हैप्पी बोलते हैं। नववर्ष का ‘नव‘ बड़ा मजेदार है। अंग्रेजी कैलेण्डर का यह नववर्ष विचारणीय है। मेरा ध्यान बार-बार ‘नव‘ पर जाता है। शब्द ‘नव‘ के कई अर्थ है। ज्योतिष में नवग्रह हैं। ज्योतिष के ‘नव‘ का अर्थ नया नहीं है। इसका अर्थ नवां है। नवां बोले तो ‘नाइन्थ’। संस्कृत भाषा के ‘नवम्‘ का अर्थ भी नया नहीं है। 9वाँ है। नवरात्रि में भी ‘नव‘ शब्द जुड़ा हुआ है। इस ‘नव‘ का अर्थ संख्यावाची है। लेटिन का नवम्बर का अर्थ भी नौवां है, लेकिन अंग्रेजी कैलेण्डर में यह 11वाँ है। इसी तरह लेटिन सेप्ट अंग्रेजी का सितम्बर 7वाँ और आॅक्ट अक्टूबर 8वाँ है लेकिन कैलेण्डर में अक्टूबर 10वाँ और सितम्बर 9वाँ है। महाप्राण निराला ने ”अमृत मंत्र नव भारत में वरदे/वीणा वादिन वरदे लिखा है। यहाँ ‘नव भारत’ का अर्थ नया है। नव यौवन का अर्थ नौवां यौवन नहीं है। नया यौवन है। हम भारत के लोग यूरोपीय रिनेसा को नव जागरण कहते हैं। इसका अर्थ भी नया है। नव या नये के चक्कर में नवना या झुकना ठीक नहीं माना जाता है। तुलसीदास ने भी झुकने के लिए नवना शब्द का प्रयोग किया है- नवनि नीच की अति दुखदाई।

अंग्रेजी नववर्ष मुझे उल्लास नहीं देता। मन बार-बार सोचता है कि 365 दिन के वर्ष को हम जनवरी से ही क्यों प्रारंभ करें? जनवरी माह में भारत में कोई नया रूपक नहीं खिलता। न कृषि में, न समाज में, न हमारी प्रकृति में। जनवरी की हवायें भी प्रीतिपूर्ण स्पर्श नहीं देती है। वनस्पतियां भी शीत के कारण सिकुड़ी रहती है। हवाओं में मधु नहीं होता। प्रकृति में नवछन्द भी नहीं उगते। जनवरी में सौन्दर्यबोध नहीं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। वैदिक साहित्य में वर्ष के 720 अहो रात्र की चर्चा है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 720 अहो रात्र में करती है। अहो रात्र दिन-रात के जोड़े को कहते हैं। 720 अहो रात्र मिलकर वर्ष बनते हैं। पृथ्वी परिक्रमा प्रकृति का नियम है। भारतीय परंपरा में वर्ष की काल गणना चैत्र माह की प्रतिप्रदा से होती है। हैप्पी न्यू ईयर का भारतीय परंपरा से कोई लेना-देना नहीं है। घूम-फिरकर वही प्रश्न आता है कि नया साल जनवरी से ही क्यों? बसन्त की मधुछंदा हवाओं के समय क्यों नहीं? फाल्गुन या चैत्र से क्यों नहीं? अंग्रेजी विद्वानों की अपनी सोच है। पहले उन्होंने 10 माह का कैलेण्डर बनाया। उसमें जनवरी, फरवरी नहीं थी। तब सितम्बर सातवां था। अंग्रेजी में सेप्टम्बर था। जनवरी और फरवरी जोड़ने से 7वाँ माह 9वाँ हो गया। 8वाँ अक्टूबर लैटिन में आक्ट था। यह 10वाँ हो गया। दिसम्बर का अर्थ ही 10वाँ होता है। वह 12वाँ हो गया। अंग्रेजी कैलेण्डर में झोल है। मित्र लोग तमाम रंगीन कैलेण्डर और डायरी दे जाते हैं। इनमें विभिन्न उत्पादों के प्रचार होते हैं। सरकारी कामकाज की तारीखें होती हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर दीवार पर है। इस कैलेण्डर का अध्ययन जरूरी है। अंग्रेजी सभ्यता प्रभावित विद्वान अंग्रेजी में सोचते हैं। अंग्रेजी में हंसते हैं और हिन्दी में उदास हो जाते हैं। वह जनवरी में नये होते हैं। बसन्त में मधुगंधा नहीं होते हैं। ऋतुराज बसन्त का स्वागत नहीं करते। वैलेन्टाइन को प्रेम का साधुसंत मानते हैं। चर्च की शब्द सूची में वैलेन्टाइन का नाम नहीं है।

प्रकृति के अंश प्रतिपल बदलते रहते हैं। सो ग्रीष्म, शीत, वर्षा प्रतिपल नए हैं। देखने और अनुभव करने की भारतीय दृष्टि अखंड है। इसमें भूत और वर्तमान का भेद नहीं है। बीते और प्रत्यक्ष की समय विभाजक रेखा नहीं है। अस्तित्व प्रतिपल नया है। प्रतिपल नया होना इसकी प्रकृति है। हमारी प्रत्येक सांस नई है। छंद नए हैं। भूत और अनुभूत साथ साथ हैं। हम भी प्रतिपल नये हैं। प्रत्येक सूर्योदय नया हैं। हरेक चन्द्र भी। खिलने को व्याकुल कली आज खिल गयी है। पुष्प भी नये हैं। वह बीज बनने को व्याकुल है। पुराने या नये का अलग अस्तित्व नहीं हैं सब कुछ एक प्रवाह में है। पुराना मरता नहीं है। वह नया होकर बार-बार खिलता है। अस्तित्व नूतन या पुरातन नहीं है। यह चिरंतन है। सदा से है। सदा रहता है। कभी नष्ट नहीं होता। काल विभाजित सत्ता नहीं है। काल गणना और विभाजन का काम हम करते हैं। काल भी अस्तित्व का भाग हो सकता है। प्रलय की स्थिति में गति नहीं होती। इसलिए काल भी नहीं होता है। दिवस और रात्रि भी नहीं होते। प्रलय के बाद सृष्टि उगती है। गतिशील होती है। गति से समय आता है। हम उसका विभाजन करते हैं। दिन-रात, मास, वर्ष काल के ही अंग है। कल जनवरी का पहला दिन था। उसके एक दिन पहले हम सब वर्ष 2021 में थे। इन दो दिन के भीतर वर्ष बदल गया, लेकिन दिसम्बर से लेकर आज दो जनवरी तक कहीं कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ता। जनवरी भी नई नहीं है। नववर्ष में कुछ भी नया नहीं दिखाई पड़ता है। न गीत, न छन्द, न प्रकृति के आनन्द की अनुभूति। न रूप, न रस, न गंध, न स्पर्श। यहां कुछ भी नया नहीं है और न ही कुछ पुराना। जम्बूद्वीप का भरतखंड नमस्कारों के योग्य है। यहाँ 6 ऋतुएँ आती हैं बार-बार। ढेर सारी नदियाँ हैं, लेकिन जनवरी में नदियाँ भी उल्लासधर्मा नहीं होती हैं। अंग्रेजी नववर्ष के दिनों में कड़ाके की सर्दी और कोहरा है। सर्दी भी कड़ाके की ठन्ड में कांप रही है। सर्दी के साथ वर्षा भी अपना खेल दिखा रही है। पशु-पक्षी सहित सभी जीव शीत पीड़ित हैं। अनेक जीव शीत निष्क्रियता में छुप गए हैं। सांप आदि जीव हाईबरनेशन में हैं। तो भी इस नववर्ष पर भी आप सबको बधाई। भारत का मन चैत्र माह के संवत्सर से बंधा है। संवत्सर सृष्टि सृजन की सुमंगल मुहूर्त है। यही भारत का नववर्ष है और अंतर्राष्ट्रीय नववर्ष भी है। उसी की प्रतीक्षा है। भारत के लिए यह आनंद का मुहूर्त है। (हिफी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ