भीख मांगना एक सामाजिक अभिशाप

भीख मांगना एक सामाजिक अभिशाप

(बृजमोहन पन्त-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भिक्षावृत्ति समाज के लिए एक अभिशाप है। हर कस्बे, शहर व महानगर में भिखारी नजर आ जाते हैं। इस गरीब देश में भीख मांगने वालों की तादाद अधिक है। गरीब आदमी रोजी व रोटी के लिए भीख मांगता है। कई लोग जो विकलांग, कुष्ठ रोग से पीड़ित व अन्य शारीरिक विकृति का शिकार होते हैं, भीख मांगने को विवश होते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में गरीबी को भीख मांगने का कारण बताया है। दिल्ली सरकार ने कोरोना काल में भिखारियों को दिल्ली से बाहर करने का प्रस्ताव दिया था। हाईकोर्ट ने एक रिट के जवाब में कहा था कि भिखारियों को दिल्ली से बाहर नहीं भेजा जा सकता। ऐसा करना मानवता के खिलाफ अपराध होगा।
भिखारी वह है जिसके पास आजीविका का साधन नहीं है। हाईकोर्ट ने भीख मांगने का अधिकार देने को भी कहा था।
भिक्षावृत्ति को कई राज्यों ने अपराध की श्रेणी में रखा है। भिक्षावृत्ति उत्तरप्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिरोध अधिनियम 1975 के तहत अपराध घोषित किया गया है। उत्तराखण्ड ने सन् 2017 में भिक्षावृत्ति पर कानूनी रोक लगायी थी। क्योंकि धार्मिक स्थलों पर भिक्षावृत्ति की समस्या गंभीर है। पुण्य कमाने के लिए लोग भिखारियों को पैसा, कपड़े व दूसरी चीजें दान में देते हैं। तीर्थस्थल पर भिखारी एक जरूरत बन गये हैं जो पुण्य प्रदान करने में सहायक हैं।
भिक्षावृत्ति को कानून के द्वारा हटाया नहीं जा सकता। भारतीय समाज में दान देना आस्था का प्रश्न है। यहां दान लेना व देना पुण्य का कार्य है। ज्योतिष विज्ञान में विभिन्न ग्रहों की शांति के लिए निर्देशित वस्तुओं के दान देने की परम्परा है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार यज्ञोपवित संस्कार के बटुकों को भिक्षावृत्ति के लिए भेजा जाता है। भिक्षावृत्ति इसलिए शास्त्र सम्मत है।
कई कारणों से भीख मांगने पर रोक नहीं लग सकती। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर कहा कि भिक्षावृत्ति पर रोक नहीं लगा सकते। कोई व्यक्ति यह नहीं चाहता कि वह भीख मांगे परन्तु गरीबी के कारण उसे भीख मांगनी पड़ती है। यह सामाजिक व आर्थिक मसला है। शारीरिक अक्षमता भी एक कारण है। अपंगता भीख मांगने को विवश करती है।
कई किशोरों को भीख मांगते देखा जाता है। यह भिक्षावृत्ति अधिनियम व किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत आता है। 14 वर्ष से नीचे के किशोर के भीख मांगने पर पहले से ही प्रतिबंध है। यदि उन्हें इस काम से हटा दिया जाय तो फिर भीख मांगना शुरू कर देते हैं। अभिभावकों को भी बच्चों के द्वारा कमाये सिक्के अच्छे लगते हैं। इसलिए वे भी उन्हें भीख मांगने के लिए बाहर भेजते हैं।
भारत में एक चैथाई से अधिक लोग गरीबी से नीचे का जीवन निर्वाह कर रहे हैं। भिखारी मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा व अन्य चैरेटेबिल संस्थाओं के आसपास नजर आते हैं। देवी-देवताओं के फोटो लेकर आस्था के बलबूते पर लोगों से भीख मांगते हैं। भिखारी प्रायः अशिक्षित व कम पढ़े लिखे होते हैं। उन्हें कानून की जानकारी नहीं होती है। पुलिस का डर जरूर रहता है। कई स्थानों पर भीख से कमाये पैसे गुंड़े हड़प लेते हैं।
एक सर्वे में पता चला है कि कई भिखारी सम्पन्न परिवारों के होते हैं। वे भीख के द्वारा रोज 200 से 500रू0 कमा लेते हैं लेकिन आदत से मजबूर हैं। खनकते सिक्कों की चमक का आकर्षण उन्हें धंधें में लगाये रखता है। उनका सारा जीवन भीख मांगते निकल जाता है। वे आर्थिक असुरक्षा का शिकार होते हैं और सोचते हैं कि भीख मांगना छोड़ देंगे तो बचायी गयी आय भी खर्च कर देंगे। कई भिखारी करोड़पति व अरबपति होते हैं लेकिन भीख का कटोरा उनके हाथ से नहीं छूटता है।
कुष्ठ आश्रमों के कुष्ठ रोगी भीख मांगने निकल जाते हैं। समाज कल्याण विभाग उन्हें विकलांग नहीं मानता है। उन्हें चिकित्सा प्रमाणपत्र के लिए भी ठोकरें खानी पड़ती है। सामाजिक संस्थायें उनकी मदद नहीं करती। कभी कोई फल व कंबल बांट जाता है। संतोष इस बात का है कि कुष्ठ रोगियों के बच्चे शिक्षित बन रहे हैं ताकि उनका भविष्य उज्जवल बने। भिखारियों का पुनर्वास व उन्हें मासिक पेंशन देकर उनकी दशा में सुधार आ सकता है। (हिफी)
अमीर भिखारी
देश के लगभग हर चैराहे, गली मोहल्ले, बस और ट्रेन में आपको भीख मांगते हुए दिख जाते हैं। आप जिन भिखारियों को चिल्लर के रुप में एक-दो या पांच रुपये देते हैं उनके बारे में आपको ये खबर चैंका देगी। जी हां जरा सोचिए कि जिस भिखारी को आप सिक्के देते हैं और वो करोड़पति निकल आए तो आपके चेहरे पर क्या भाव आएगा वो देखने लायक ही होगा। आज हम आपको जिन भिखारियों के बारे में बताने जा रहे हैं वो दरअसल भारत के सबसे अमीर भिखारियों में शामिल हैं। इन भिखारियों के पास वो तमाम सुविधाएं मौजूद हैं जो शायद एक आम आदमी के पास न हो। इनके पास बड़ा बैंक-बैलेंस है, इनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते है। पहले नंबर पर आते हैं भरत जैन परेल, ये अपने परिवार के साथ मुंबई के परेल इलाके में रहते हैं। भरत हिन्दुस्तान के सबसे अमीर भिखारी हैं, फिर भी अगर ये परेल पर भीख मांगते दिख जाएं तो हैरान मत होइएगा। पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक भरत जैन की गिनती नंबर वन अमीर भिखारी के रूप में होती है। इसके पास दो फ्लैट हैं। इन फ्लैट्स की कीमत करीब 70 लाख है। मुंबई के परेल इलाके के अलावा वह अलग इलाकों में भीख मांगते हैं। करीब-करीब 7,5000 रुपये हर महीने कमाता है। आम आदमी कहां इतनी कमाई महीने में कर पाएगा।
हिंदुस्तान की सबसे अमीर भिखारियों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं कोलकाता की रहने वाली लक्ष्मी। लक्ष्मी ने 1964 से कोलकाता में सिर्फ 16 साल की उम्र में भीख मांगना शुरु किया था। पचास सालों से भी ज्यादा जीवन भीख मांगने में बिताया है। भीख से लाखों रुपये जुटाए। इनके पास बैंक बैलेंस अच्छा-खासा है। हर दिन एक हजार रुपये के आसपास कमाई है लक्ष्मी की। अगर महीने के हिसाब से देखा जाए तो इनकी महीने की कमाई 30 हजार के आसपास है। मुंबई की रहने वाली गीता भी अमीर भिखारियों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आती हैं। गीता मुंबई के चरनी रोड पर भीख मांगती हैं। बताया जाता है उनका अपना फ्लैट है और वो अपने भाई के साथ रहती है। गीता हर दिन करीब 15 सौ रुपये भीख मांगकर कमा लेती हैं। हर महीने इतना कमा लेती है कि ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट भी इनकी इनकम देखकर गश खा जाएं। मीडियो रिपोर्ट के मुताबिक भीख मांग कर गुजारा करने वाले चंद्र प्रकाश आजाद के पास गोवंडी में अपना घर है। 2019 में एक दुर्घटना में जान गंवाने के बाद मुंबई पुलिस ने उनकी सारी प्रॉपर्टी ढूंढ निकाली थी। ये जनाब हैं पप्पू कुमार, पटना के रहने वाले पप्पु भी अच्छे खासे अमीर हैं। वो बिहार के हैं और इनका बैंक बैलेंस 1 करोड़ से भी ऊपर है। फिर भी लोगों से यह कह कर भीख मांगते हैं कि कई दिनों से कुछ भी खाया पीया नहीं हैं, कुछ खाने के लिए रुपए दे दो। अक्सर लोग इनकी हालत देखकर और तरस खाकर भीख दे ही देते हैं। पप्पू कुमार अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाते हैं।
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