अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति संसद के दूसरे दिन 13 नवंबर को रुद्राक्ष अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केंद्र वाराणसी में अनेक सत्र संपन्न हुए ।
इन सत्रों को संबोधित करने वाले मुख्य रूप से लद्दाख के सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल , केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद , सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय व कर्नाटक के डॉ विक्रम संपत , विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार , भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर , डॉ अशोक बेहुरिया आदि रहे ।
गंगा महासभा बिहार झारखंड के उपाध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने वाराणसी से प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि विभिन्न विषयों पर इन सत्रों में हुई चर्चा के अनुसार भारत के कई हजार मंदिरों को तोड़ने का काम विदेशी आक्रांता ओं ने किया है । कुछ मंदिर इसलिए बचे रहें कि वह सब उस क्षेत्र विशेष के जंगलों में स्थित थे , जिन पर उन आक्रांताओ की नजर नहीं पड़ी ।
श्री पोद्दार ने बताया कि अनेक सत्रों में संपन्न हुई सारी चर्चाओं को एक साथ देना अत्यंत ही दुष्कर लग रहा है । एक बात जरूर है कि जिस विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नालंदा में स्थित 90 लाख पांडुलिपियों को जला कर हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया उस बख्तियार खिलजी के नाम पर आज भी बख्तियारपुर स्टेशन स्थित है ।
यह इस देश के लोगों के लिए अत्यंत ही शर्मनाक है ।
आज प्रश्नोत्तर काल के दौरान इस अंतरराष्ट्रीय संस्कृति संसद में गंगा महासभा बिहार-झारखंड के उपाध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने अपने प्रश्न को रखा जिसमें कहा गया कि 1947 में धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ । आबादी से सवाई भूमि पाकिस्तान के रूप में दे दी गई । इसके बाद भी अनेक लोग भारत में ही रह गए । श्री पोद्दार का कहना है कि जितने लोग उस काल में भारत में रह गए उनके हिस्से की भूमि तो पाकिस्तान में चली गई वह भूमि भारत को पाकिस्तान से सिंध के रूप में वापस लेनी चाहिए ।
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