बाप से अपने कितने बड़े हो गए
पांव पर अपने जब से खड़े हो गए
बाप से अपने कितने बड़े हो गए
पाला-पोसा पढ़ाया लिखाया जिन्हें
नौकरी पाके चिकने घड़े हो गए
ज्ञान जिनको दिया कखगघ का था
तानकर सीना अपना खड़े हो गए
दो से आंखे हुईं चार हैं जब से तो
देख लो कितना अब नकचढ़े हो गए
किस तरह से वसूली बढ़े इसलिए
सब नियम-कायदे हैं कड़े हो गए
देश ऐसा नहीं और देखा कहीं
मंत्री कितने यहां अनपढ़े हो गए
ऑख का तारा जिनको बताते थे जय
वे अंगूठी में हीरा जड़े हो गए
*
~जयराम जय
'पर्णिका',बी-11/1,कृष्ण विहार,आ.वि.
कल्याणपुर,कानपुर-208017 (उ०प्र०)
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