विघ्नहर्ता गणपति महोत्सव
स्कन्द पुराण , शिव पुराण , तमिल में कांडा पुराण के अनुसार भगवान शिवपुत्र गणेशजी का वाहन है मूषक। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है। गणेशजी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य और चूहे के मस्तिष्क का आकार प्रकार एक समान है। चूहे का किसी न किसी रूप में मनुष्य से कोई सबंध जरूर है उसी तरह जिस तरह की चूहे और हाथी का। भद्र पद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि बुधवार को गणपति का अवतरण हुआ था। भगवान गणेश को गणपति , गणेश , गणपति बप्पा, गजानन , वक्रतुंड , विनायक , मंगलमूर्ति , वप्पा , पवित्रता , रिद्धि सिद्धि , लंबोदर , विघ्नहर्ता कहा जाता है । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि शिवपुराण रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में के अनुसार माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर भगवान विष्णु उत्तर दिशा में सर्वप्रथम मिले हाथी का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि एवं सबका पूज्य बनकर समस्त गणों का स्वामी है । गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाने के तदोपरांत स्वयं मीठा भोजन करने पर वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। महादेवजी, पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। चौपड़ का साक्षी के लिए माता पार्वती ने दूर्वा से गणेश बालक का उत्पन्न कर हार-जीत का साक्षी रखा था । दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी जीतीं। बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया टैब उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ। माता पार्वती को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं। एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो। बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी 'तथास्तु' कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा।तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने 'गणेश व्रत' का इतिहास उनसे कह दिया।तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर 'ब्रह्म-ऋषि' होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। श्री गणेशजी, सबकी कामनाएँ पूर्ण करते हैं ।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन निषिद्ध किया गया है। व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखने पर झूठा-कलंक प्राप्त होता है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। व्यक्ति को जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-'सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥' महाराष्ट्र में गणपति बाप्पा की उपासना , गणपति उत्सव प्रमुख पर्व है । बिहार एवं आसाम में बहुला चतुर्थी एवं गणेश पूजा मनाई जाती है । भारतीय प्रवासी एवं सनातन संस्कृति के लोग गणेश पूजा का महत्व आवर उपासना करते है । माता पार्वती द्वारा दूर्वा से उत्पन्न गणपति की उपासना दूर्वा , मोदक से किया जाता है । दूर्वा गणेश जी का प्रिय है । 59 वर्षों के बाद भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी शुक्रवार 2078 दिनांक 10 सितंबर 2021 को सिद्धि विनायक का व्रत दुर्लभ संयोग में है। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी, पत्थर चौथ , डंडा चतुर्थी , वहुला चतुर्थी एवं अन्य गणेश चौथ जाता है। पुरणों के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि मध्याह्न काल में होने के कारण दोपहर का समय गणेश पूजा के लिए शुभ माना जाता है। 10 सितंबर को चतुर्थी तिथि सुबह 11:09 बजे भद्रा प्रारम्भ और रात्रि 09:58 बजे पर समाप्त होगी। उपासक भद्रा में 10 सिंतबर सुबह 11:09 बजे से पहले श्रीगणेश का पूजन कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र अनुसार चंद्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में रहने के कारण भद्रा पाताल लोक की होती है। भद्रा पाताल लोक की होने से शुभ कार्य कर किए जाते हैं। 10 सिंतबर को भद्रा तुला राशि में है, इसलिए गणेश चतुर्थी पर भद्रा का गणपति पूजन एवं स्थापना पर कोई प्रभाव नहीं रहेगा। गणपति उपासक मध्याह्न काल के दौरान श्रीगणेश पूजन दोपहर 12:01 बजे से दोपहर 01:43 बजे के मध्य पूजन करें। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान्ह काल में हस्त और चित्रा नक्षत्र, ब्रह्म योग, वणिज करण, तुला राशि के चंद्रमा, सिंह राशि में सूर्य होंगे तथा चंद्रमा अस्त रात्रि 09 बजे होगा । चतुर्थी चंद्र दर्शन करना वर्जित है। श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के दिन तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। उपासक तीन व पांच दिन तक गणपति की मूर्ति स्थापित करते हैं।
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