चक्रवर्ती सम्राट को गरीब आदमी बताने की बुद्धि हीनता
अपने यहां सदा कवियों और लेखकों के लिए बहुत ही उच्च स्तर के मानदंड रहे।
क्योंकि समाज में शेष सबके लिए भी उच्च स्तर के मानदंड थे:- राजा के लिए ,अमात्य के लिए, पुरोहितों के लिए, ब्राह्मणों के लिए,राज पुरुषों के लिए, क्षत्रियों के लिए,श्रेष्ठियों के लिए और शिल्पियों के लिए तथा सेवकों के लिए भी ।।
इसलिए साहित्यकारों के लिए भी ।
स्पष्ट है कि परिवेश होने से उन सब मानदण्डों का पालन होता था।
अंग्रेजों से समर्पण शील संधि के बाद बहुत ही मामूली स्तर के और अपने समाज को धोखा देने में निपुण लड़के लोग सत्ता में आ गए तो उन्होंने ऐसे ही लोगों को साहित्य शिक्षा आदि में बढ़ाया और एक चालू राष्ट्रीय परिवेश ही बन गया।।
इसका परिणाम यह हुआ कि एक जो मर्यादा थी कि साहित्य कार भी उसी विषय में लेखनी चलाएगा जिस विषय का उसे ज्ञान है ,वह मर्यादा भंग हो गई ।।
सबसे पहले स्वयं को प्रगतिवादी कहने वाले मूर्खों और लम्पटों के झुंड ने कल्पना के घोड़े दौड़ा कर और भारत के प्रति हीनता जगाने के संकल्प से प्रेरित स्टालिन लेनिन की रणनीति के दास बनकर कुछ भी लिखना शुरू कर दिया ।
उसके प्रभाव से अच्छे खासे भले सज्जन जिनमें कविता की जन्मजात सामर्थ्य थी परंतु जिन्हें यह पता ही नहीं था कि उसके लिए बाद में दक्षता प्राप्त करनी होती है ,ज्ञान प्राप्त करना होता है ,विशेषज्ञता प्राप्त करनी होती है, अध्ययन करना होता है ,अपनी निपुणता को बढ़ाना होता है, दक्षता को मांजना होता है और प्रतिभा का उत्कृष्ट निखार करना होता है ,वे मामूली लोग केवल अफसरों की चाटुकारिता द्वारा अनुग्रह प्राप्त करते हुए तरह तरह का पुरस्कार पाने की जुगाड़ में कुछ भी लिखने लगे।।
उसका परिणाम यह हुआ कि महाराजा ,सम्राट, चक्रवर्ती सम्राट और साधारण कोई गरीब व्यक्ति जो अभी की चालू सामान्य स्तर की राजनीति में नेता बन गया है, फ़टीचर रहकर ,इन सब का चित्त से भेद मिट गया।।
महाराणा प्रताप जब वन में रहते थे ,,तब भी उनके साथ सेवकों का बड़ा दल रहता था ।।सैनिक रहते थे। चारों तरफ देशभक्त निष्ठावान प्रजा रहती थी ।
गुप्तचरों का जाल रहता था ,बहुत ही विशाल एक तंत्र चलता था ।
उन महाराज के जंगल में रहने का अर्थ चूहे की तरह या किसी गरीब आदमी की तरह, किसी साधारण फटीचर नेता की तरह रहना नहीं होता भाई।
चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप जी गौरव के साथ ही थे।
धन का जो भी संकट था वह विशाल सैनिकों की संख्या के पोषण के संदर्भ में था।पूरे तन्त्र के पोषण के संदर्भ में कमी थी।
एक तो अकबर वाले पक्ष को जरूरत से ज्यादा बढ़ा कर बताया गया है, जो झूठ लिखा गया।
हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर का पक्ष हार कर लौटा और इसलिए जो लोग वहां दो मुख्य मुख्य सेनापति थे, एक हिंदू और एक मुसलमान,
दोनों की ड्योढ़ी में हाजिरी अकबर ने बंद कर दी कि तुम हार कर लौटे हो ,मुँह मत दिखाओ ।
उस हारी हुई लड़ाई को हल्दीघाटी में अकबर की जीत और परम प्रतापी महाराणा प्रताप की हार बता दिया अभागों ने।
इसी प्रकार उनके संकट को किसी मामूली लाचार आदमी का संकट ,किसी साधारण नेता का संकट ,किसी मामूली एमएलए एमपी का संकट जैसा बता दिया ।।
अरे,
परम प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट को विशाल सैन्य बल के पोषण में धन की कमी होने के संकट के स्थान पर यह मान लेना कि वह कोई साधारण व्यक्ति की तरह संकट में है ,एकाकी हैं ,अकेले हैं ,कोई साथ में नहीं है और रोटी ठीक से नहीं मिल रही है बच्चे के लिए , कहां की गप्पे हैं, ये कहाँ की गप्पें हैं रे।
बहुत ही लज्जा आती है।
ग्लानि होती है कि ये अनधिकारी क्या क्या लिखे जा रहे हैं।।रामेश्वर मिश्र पंकज
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