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जिंदगी-मौत का मुक्कमल इंतजाम सीख गया

जिंदगी-मौत का मुक्कमल इंतजाम सीख गया

जिंदगी-मौत का मुक्कमल इंतजाम सीख गया,
पल-पल, जीना, हंसना सरेआम सीख गया।

दागदार कुर्ते को हरदम बेदाग किया जाता है,    
और कैसे हो जाता हूँ मैं बदनाम सीख गया।

बेइमानी के बाजार में सदा बिकता हूँ,
रात तलक हो जाता हूँ नीलाम सीख गया।

मयखाने में दर्द के पैमाने को शराब में मिला,
होठों से कैसे लगाया जाता है जाम सीख गया।

जख्म गहरे, ठहरे, बहरे या सुनहरे हैं,
अश्कों से सींच, मिलता  आराम सीख गया।

जिंदगी  मेरे साथ रोकर, हंसकर चलते जाना,
परिवार की मुस्कुराहट ही है ईनाम सीख गया।

राजेश लखेरा, जबलपुर।
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