शहर से गांव
शहर, परिवार, घरबार छोड़
जंगल आया हूँ,
वाहन, गाड़ी साथ नहीं,
महज पैदल आया हूँ।
खुशियों की बारिश भिंगोती नहीं,
गम से भींगने, काले बादल लाया हूँ।
कौन कहता है अकेला आया हूँ मैं,
बर्तन, आटा,दाल चावल लाया हूँ।
कभी हम समय से कहते,
कभी वक्त हमसे कहता,
दिल को समझाने,
साथ दिले पागल लाया हूँ।
यहाँ अपनापन जीवन को
रंगो से सुबहो शाम भरता है,
गांव में पैदा हुआ बड़ा हुआ,
बचपन की यादों का कल लाया हूँ।
रोज सांझ परिवार से
गुफ्तगूं खुश करती है जिगर,
अपने दिल के संग,
महबूबा के दिल की महफिल लाया हूँ।
कोई कोषों दूर नहीं,
सब करीब ही तो हैं, राजेश,
रेलगाड़ी के पहुंचने से पहिले,
मन को पहुंचाने वाला पल लाया हूँ।
राजेश, जबलपुर।
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