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वर्षा पर पॉच सवैया

वर्षा पर पॉच सवैया

कहीं मेघ मृदंग बजा हरषे 
कहीं चमकी चपला है चमाचम ।
कहीं पेड़ नहाकर तृप्त हुये
कहीं ताल तलैय्या खेत डमाडम।
कहीं पायल बॉध के झूम रही 
कहीं मदहोश हो नाची छमाछम ।
कहीं मीठी फुहार घटा बरसी
कहीं मूसलाधार होती झमाझम।
             ( 2 )
गिरी बॅूदें हुआ तन झंकृत है
मन ही मन में जियरा हरषे।
मघा से रससिक्त हुई है रसा
है अघाय गई बरसा जल से।
बरसात की रात है काली घटा
प्रिय की छबि देखने को तरसे।
बिजली चमकी लगा अंक लिया
फिर तो बदरा जम के बरसे।
                ( 3 )
कड़की जबसे तड़िता नभ में
मन होने लगा है अधीर मेरा।
पपिहा रटने में लगा पी कहॉ
पी कहॉ है छुपा हुआ हीर मेरा।
घनघोर है काम की पीर जगी
प्रिया ढूॅढ रहा वर  वीर  मेरा ।
मन  में  है अनंग  उमंग  चढी़
डिकता दिखता है ज़मीर मेरा।
                (4)
बरसात ने आकर डेरा किया
रस की बन के रजधानी यहॉ ।
उठी सोंधी सी गन्ध धरा महकी
चढ़ा पादपो पे रंगधानी  यहॉ ।
हठ कामिनी का जय चूर हुआ
पल एक में मानिनी मानी यहॉ।
मिला जो अपनापन बादल को
जम के बरसा फिर पानी यहॉ।
                ( 5 )
मदमस्त मयूर हो नाच रहा
अपनी प्रिया को है रिझाने लगा।
अमराई  ने  पैग  चढ़ाये यहॉ
फिर काम के बाण चलाने लगा।
बन बाग ने ऐसा सिंगार किया
रस  की  बरसा  बरसाने  लगा।
तट बैठ के ताल में दादुर मण्डल
वेद  ऋचायें   सुनाने   लगा ।
                   *
~जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
मो० 9415429104 एवं9369848238
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