‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ को नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में ‘हिन्दू और नाजी स्वस्तिक’ के पीछे आध्यात्मिक अंतर पर अपने शोध के लिए सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
प्रतीकों से प्रक्षेपित सूक्ष्म स्पंदन ही समाज द्वारा उन प्रतीकों को देखने का मापदंड हो !
प्रत्येक प्रतीक से सूक्ष्म स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । ये सूक्ष्म स्पंदन सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं । अधिकांश धार्मिक नेता उनके धर्म के प्रतीकों से प्रक्षेपित सूक्ष्म स्पंदनों की ओर ध्यान नहीं देते । इससे उनके भक्तों पर अनिष्ट परिणाम हो सकते हैं, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । ‘दी इंटरनेशनल कॉन्फ्रेन्स ऑन इनोवेश्न्स इन मल्टीडिसिप्लीनरी रीसर्च (iConference) नई देहली के अंतरराष्ट्रीय परिषद में वे बोल रहे थे । श्री. शॉन क्लार्क ने इस परिषद में ‘हिन्दू और नाजी स्वस्तिक में आध्यात्मिक भेद’ यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार मिला । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक तथा श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं । इस परिषद का आयोजन ‘आय कॉन्फ्रेन्स’ नई दिल्ली ने किया था ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया यह 78 वां शोधपरक लेख था । इससे पूर्व विश्वविद्यालय द्वारा 15 राष्ट्रीय और 62 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से 5 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय को ‘सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है । श्री. शॉन क्लार्क ने विविध प्रतीकों के, विशेषतः हिन्दू और नाजी स्वस्तिक के संदर्भ में किए शोध के अंतर्गत किए विविध प्रयोगों की विस्तार से जानकारी दी । उन्होंने ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (यू.ए.एस.) इस उपकरण के द्वारा किए गए शोध कार्य की जानकारी विशेष रूप से बताई ।
1. हिन्दू स्वस्तिक और नाजी स्वस्तिक का तुलनात्मक अध्ययन : मूल हिन्दू स्वस्तिक में अत्यधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई, जबकि नाजी स्वस्तिक में अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।
2. हिन्दू स्वस्तिक और नाजी स्वस्तिक हाथ की बांह पर पहनने का परिणाम : इस प्रयोग में सहभागी दो व्यक्तियों में से प्रथम व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट होने से प्रयोग के पहले ही उससे नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । दूसरे व्यक्ति से जांच के पूर्व सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । बांह पर नाजी स्वस्तिक बांधने पर प्रथम व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल दुगुना बढकर 5.73 मीटर हो गया । दूसरे व्यक्ति में 5 मीटर लंबी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल निर्माण हुआ तथा उसकी सकारात्मक ऊर्जा पूर्णतः नष्ट हो गई । उपरोक्त जांच के उपरांत उनके हाथ की बांह पर बंधा नाजी स्वस्तिक निकालने पर, दोनों व्यक्ति मूल स्थिति (प्रयोग के पहले की स्थिति) में आने तक प्रयोग रोक दिया गया । मूल स्थिति में आने पर उनके हाथ की बांह पर हिन्दू स्वस्तिक बांधा गया । 20 मिनिट के उपरांत की गई जांच में पाया गया कि प्रथम व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल पूूर्णतः नष्ट हो गया है । इतना ही नहीं, उसमें सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हुई, जिसका प्रभामंडल 1 मीटर था । दूसरे व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल मूल 3.14 से बढकर 6.23 मीटर हो गया, अर्थात लगभग दुगुना हो गया । उपरोक्त दोनों प्रतीक अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार किस प्रकार शक्तिशाली हैं, यह इस प्रयोग से सिद्ध हुआ । नाजी स्वस्तिक धारण करनेवाले पर तीव्र नकारात्मक परिणाम होता है तथा प्राचीन भारतीय स्वस्तिक का अत्यधिक सकारात्मक परिणाम होता है ।
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