जबकि कविता
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
मन में पालकर द्वेष-
बढा रहे हो तुम विद्वेष।
जबकि कविता होती है-
कांता सम्मित उपदेश।1।
उसे कुछ नहीं आता है,
सबसे यही बताता है।
और मेरे पास आता है,
बडे-बडे लोगों का संदेश।2।
नहीं है किसी विषय का ज्ञान,
रग-रग में भरा है अभिमान।
बडा उदण्ड है,पाले घमंड है,
सबको पहुंचाता है ठेस।3।
वह स्वघोषित ज्ञानी है,
न कथा है न कहानी है।
यहां का वहां वहां का यहां-
कहाँ कोई कहता है बेस।4।
वह थेथर है थेथर,
इसीलिए है बेघर।
विरोध की जागृति-
है एकमात्र उपदेश।5।
जहां कहीं भी गया,
कहा लोगों ने बेहया।
फिर भी न है लाज-
और शरम का लेस।6।
ऐसे लोगों से सावधान,
जिसका जीवन श्मसान।
और टंगरी मारने को वह-
तैयार बैठा है शेष।7।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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