विहँसेगी पूनम की रात
*******************
परनिंदा का स्वाद अनूठा
लेते रहे हैं जीवन भर,
चौथापन भी कहाँ अछूता
पी ही रहे हैं जी भरकर।
हम हैं दूध के धोए ऐसा
समझ लिया है निज मन में,
शक्ति भले ही चली गई हो
नहीं मलाल जर्जर तन में।
स्वार्थ प्रबल होता ही है
कब रुकती है इसकी धारा,
तोड़ चुके कई प्रेम के बंधन
फिर भी नर है कब हारा?
विष की प्यास मिटाते फिरते
लोलुप बुजदिल कायर नर,
अन्त समय सम्मुख दिखता पर
नहीं उन्हें ईश्वर का डर।
ठहरो, पल भर सुन लो मानव
अपने मन की ही कुछ बात,
घना अँधेरा छँट जायेगा
विहँसेगी पूनम की रात।
रजनीकांत।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com