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हद है

हद है

मैं सिर्फ आपसे बता रहा हूं किसी से कहियेगा मत । रिश्वत तो मैं रोज लेता हूँ, पर हर मंगलवार हनुमान जी को लड्डू भोग लगाना नहीं भूलता । मेरा हृदय पवित्र है । लहसुन, प्याज तो मैं हाथ से नहीं छूता ।


मेरा घर किसी मंदिर से कम नहीं है । आपको जानकर आश्चर्य होगा मंगलवार और गुरुवार को मांस -मछली
कभी नहीं आता घर में । हां, बाहर की बात कुछ और है
सावन और नवरात्रि आने से पहले
पत्नी कहती है--
अजी, एक माह चिकन या मटन
घर में तो आएगा नहीं,
तो इस माह उसका कोटा पूरा कर दीजिए ।
बच्चे भी बड़े जिद्दी हैं मानते ही नहीं
पर एक बात तो है,
सावन और नवरात्रि में परिवार में कोई
मांस- मछली की चर्चा तक नहीं करता ।


यदि मंगलवार को किसी दोस्त ने मीट और दारू की पार्टी रखी तो मैं जाता जरूर हूं पर अपना भोजन टिफिन में लेकर घर आता हूं और रात बारह बजे के बाद उसे खाता हूं ताकि मंगलवार का भेद खत्म हो जाए। मैं सच कह रहा हूं ।

और हाँ एक बात तो बताना मैं भूल ही गया ,मैं जब भी मांसाहार करता हूं उसके तुरत बाद मैं स्नान कर लेता हूं ताकि शरीर शुद्ध रहे।


ऐसा अद्भुत ज्ञान सुनकर
मैंने पूछा--
पीते भी हो ?
जवाब मिला-- किसी उत्सव में तो संभव नहीं है
कि मना कर पाऊं
ऐसे जब कभी बहुत टेंशन में होता हूं
तो ले लेता हूं कभी- कभार
लेकिन देशी नहीं व्हिस्की लेता हूं
ताकि स्वास्थ्य ठीक रहे
मैंने आगे पूछा और कोई नशा ?
जवाब था--
खैनी तो हम बीए में ही छोड़ दिए थे सर
हाँ गुटका या सिगरेट जब पेट नहीं साफ होता है
तो ले लेता हूँ, लेकिन रोज नहीं ।


यह सिर्फ एक आदमी का बयान नहीं है । ऐसी सोच रखने वालों की संख्या लाखों में है । अपनी तृष्णा की पूर्ति के लिए ऐसे लोग तर्कों का जाल बुनते हैं और हर हाल में यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि मैं धार्मिक हूं ।
ऐसे लोग न सिर्फ आपने आपको धोखा देते हैं बल्कि दूसरों को गुमराह भी करते हैं। -- वेद
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