डिजिटल युग में NGO पर सरकारी शिकंजा – पारदर्शिता जरूरी, पर सहयोग भी उतना ही आवश्यक : एनजीओ हेल्पलाइन (सूचना शक्ति)
✍️ लेखक : सीए संजय झा
पटना, 28 अगस्त 2025।
भारत के गैर-लाभकारी संगठनों (NGOs) पर सरकारी नियमों का शिकंजा लगातार कड़ा होता जा रहा है। नीति आयोग के NGO-DARPAN पोर्टल, आयकर अधिनियम की धारा 12AB और 80G, कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR-1) और FCRA कानून जैसे प्रावधानों ने NGOs के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सूचना शक्ति (एनजीओ हेल्पलाइन) के निदेशक मानसपुत्र संजय कुमार झा ने कहा कि—
“डिजिटल युग में पारदर्शिता और जवाबदेही अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, किंतु वर्तमान परिस्थिति NGOs को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित करने वाली है। DARPAN, CSR-1, 12AB/80G और FCRA की कठोर प्रक्रियाओं ने विशेष रूप से छोटे और ग्रामीण NGOs के लिए सामाजिक सेवा को कठिन बना दिया है।”
उन्होंने कहा कि सरकार को ‘Ease of Doing Social Good’ की दिशा में पहल करनी चाहिए, जैसे व्यवसाय के लिए Ease of Doing Business लागू है। एकल खिड़की प्रणाली, सरल अनुपालन और जोखिम-आधारित निगरानी से पारदर्शिता भी बनी रहेगी और NGO सेक्टर की ऊर्जा भी समाज-कल्याण में लग सकेगी।
FCRA कानून पर उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि विदेशी चंदे के सब-ग्रांट पर रोक, प्रशासनिक खर्च की सीमा 20% कर देना, और अनिवार्य नवीनीकरण जैसी जटिलताओं ने हजारों संगठनों की गतिविधियों को ठप कर दिया है।
झा ने कहा—
“NGO सेक्टर भारत के गरीब, ग्रामीण और हाशिए पर खड़े समुदायों की आवाज़ है। यदि इन संगठनों को प्रक्रियाओं की बजाय प्रोत्साहन दिया जाए तो वे भारत को सतत विकास और समावेशी समाज की ओर अग्रसर कर सकते हैं।”
ज्ञापन प्रधानमंत्री को
इस मौके पर एनजीओ हेल्पलाइन (सूचना शक्ति) की ओर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन भी भेजा गया, जिसमें पाँच प्रमुख मांगें रखी गईं—
एकल खिड़की डिजिटल सिस्टम – NGO-DARPAN, CSR-1, 12AB/80G और FCRA के लिए साझा पोर्टल।
आयकर व CSR नियमों में सरलता – छोटे एवं ग्रामीण NGOs के लिए न्यूनतम दस्तावेजीकरण।
सरकार-एनजीओ साझेदारी ढांचा – मंत्रालयों/विभागों में NGO प्रतिनिधित्व।
डिजिटल क्षमता निर्माण – प्रशिक्षण व तकनीकी सहयोग।
औपचारिक मान्यता व प्रोत्साहन – NGOs को राष्ट्रनिर्माण का सहयोगी माना जाए।
मानसपुत्र संजय कुमार झा ने स्पष्ट कहा—
“आज NGOs केवल सहायता के साधन नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के उत्प्रेरक हैं। सरकार यदि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के साथ-साथ सहयोग और प्रोत्साहन का वातावरण दे, तो यही संगठन भारत को समावेशी विकास और सतत भविष्य की ओर सबसे तेज़ गति से ले जा सकते हैं।”
✍️ लेखक : सीए संजय झा
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