क़लमकार का धर्म निभाओ
अब झूंठे के मत गुण गाओ
सच के साथ खड़े हो जाओ
डटकर कहो दर्द जनता का
कलमकार का धर्म निभाओ
बहकावे में अब मत आना
सही समय पर प्रश्न उठाओ
खुलकर परदाफास करोअब
मत कुर्सी के पांव दबाओ
उनसे डरकर चुप मत बैठो
और न ज्यादा पूछ दबाओ
यदि लाना है नवविहान तो
तम को जल्दी दूर भगाओ
मिलकर लड़ो महामारी से
इक-दूजे से हाथ मिलाओ
समय बहुत नाजुक है भाई
सोच समझकर कदम बढ़ाओ
अगर सफलता 'जय' पाना है
समय न अपना व्यर्थ गंवाओ
*
~जयराम जय
'पर्णिका',11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास, कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ प्र)
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