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लूटतंत्र

लूटतंत्र

यह लूटतंत्र भी एक अजूबा शब्द है । जी , लूटतंत्र एक बहुत ही बड़ा महामंत्र है । आखिर लूटतंत्र का ही तो मंत्र सिद्ध करने हेतु इस्लाम और उनके बाद अंग्रेज आए , इस लूटतंत्र की महिमा सुन समझकर । अर्थात भारत की विशेषता आखिर विश्वविख्यात है । सबको मालूम था कि भारत में लूटतंत्र का शासन चलता है । भारत की यह पद्धति सर्वोत्तम है ।
इसीलिए इस्लाम और अंग्रेज बारी बारी से आते गए और लूटतंत्र के प्रथा को मजबूत हवा देकर सुदृढ़ करते गए , किंतु जब भारतीयों ने दोनों को ही देखा कि जब इस्लाम आए तो काफी दुबले पतले थे और गए तो तो बिल्कुल तगड़े तंदुरुस्त होकर गए और अंग्रेज भी आए थे दुबले पतले ही , लेकिन ये भी अब अच्छे खासे तंदुरुस्त हो चुके थे , जिसे देख भारतीयों के भी अक्ल खुलने लगे । अब वे भी सोचने हेतु मजबूर हो गए कि आखिर यहाॅं कौन सा जड़ी बूटी है , जिससे लोग मरीज बनकर आ रहे हैं और निरोग ही नहीं , बल्कि पूर्णतः स्वस्थ हो जा रहे हैं । यहाॅं जड़ी बूटी के लिए युद्ध हो रहा है और हम यहाॅं विशुद्ध हुए बैठे हैं ।
बाहर से आए हुए रोगी स्वस्थ हो रहे हैं और हम सब कुछ होते हुए भी रोगी बने हुए ही बैठे हैं । अतः अब हमें भी इनसे युद्ध करके भगाना चाहिए , ताकि यह जड़ी बूटी हम अपना सकें ।
इसीलिए भारतीयों ने अंग्रेजों से युद्ध ठान दिया । अंततः अंग्रेज भारत छोड़कर भाग गए । अब उन भारतीयों ने अपने प्रियजनों के लिए इस देश को दो भागों में बाॅंटकर मूल जड़ी बूटी दूसरे देश में डाल दिया और जो शेष बचा था , उसपर स्वयं कुंडली मार बैठ गया तथा संविधान का निर्माण होना आरंभ हो गया । उस समय संगणक का था चलन नहीं , इसलिए हस्तलिखित ही संविधान बना , जिसमें इस लूटतंत्र का जिक्र था और इसी आधार पर राष्ट्र के सारे कार्य होते थे ।
प्रकाशन वालों के भी काम कभी बहुत ही निराले होते हैं । जब संविधान लिखकर तैयार हो गया और जब प्रकाशन में दिया गया, इसे छापकर किताब बनाने के लिए तो शायद उन्होंने उस ' लूटतंत्र ' को ' लोकतंत्र ' कर दिया ।
फलत: पहले का जनसंघ पार्टी जब भारतीय जनता पार्टी बनकर आई तो चुनाव के वक्त वे उसी लोकतंत्र के आधार पर अपना चुनाव प्रचार प्रसार किया और भारी बहुमत के साथ चुनाव जीतकर सरकार बनाई तथा प्रकाशक के गलती के आधार पर ही आज भी सत्तापक्ष कार्य कर रहा है और विपक्ष उसी ' लूटतंत्र ' को कायम करने का प्रयास कर रहा है ।
विपक्ष का सत्ता पक्ष पर बहुत बड़ा आरोप है कि सरकार प्रथातंत्र को तोड़कर काम कर रही है । जो प्रथातंत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के संविधान के अनुसार लागू किया गया , सरकार उसका हमेशा निरादर कर रही है । यह ' लूटतंत्र ' सदैव राष्ट्र के हित में है और हम इस राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं । जब हम खाऍंगे नहीं तो फिर काम कैसे करेंगे ।
इसलिए प्रकाशक को पुनः इसे छापकर त्रुटियों को दूर करना चाहिए तथा ' लोकतंत्र ' को हटाकर ' लूटतंत्र ' करना चाहिए ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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