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पुण्यार्क सूर्य मंदिर में वृहद आदित्यहृदयस्तोत्रम् का पाठ किया गया सूर्य...

पुण्यार्क सूर्य मंदिर में वृहद आदित्यहृदयस्तोत्रम् का पाठ किया गयासूर्य के चक्के से ढका हुआ है पुण्यार्क सूर्य मंदिर का गर्भ गृह

प्रत्येक वर्ष की भाती इस वर्ष भी सावन के दुसरे सोमबार को पुण्यार्क में होनेवाले सावनी महोत्सव का आयोजन होना था ,परन्तु कोरोना को देखते हुए वार्षिक पूजन सावन में न हो कर २५अगस्त को व्यवस्थापक श्री  भारत भूषण पाठक के नेत्रित्व में इस वर्ष के पूजन  को आयोजित किया गया | जैसा की ज्ञात हो पुण्यार्क पटना के समीप  स्थित बाढ़ अनुमंडल मुख्यालय से करीब १० किलोमीटर दूर स्थित पंडारक प्रखण्ड के अंतर्गत गांव में  त्रेता युगीन प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है जिसे पुण्यार्क सूर्य मन्दिर के नाम से जाना जाता है | जैसा की पुराणों  में वर्णित है त्रेता युग में भगवान श्री कृष्ण अपने पौत्र साम्ब को कुष्ट व्याधि से निवारण हेतु भारत में १२ सूर्य मन्दिरों को स्थापित किये थे| उनके द्वारा  स्थापित की गई १२ कलाओ में पुण्यार्क ही एक मात्र ऐसा सूर्य मन्दिर है जो गंगाजी के तट पर स्थित है | यहाँ मान्यता यह भी है कि गलित से गलित कुष्ट का भी निवारण मात्र सूर्य सेवा से हो जाता है |  पूजा करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है। इस मंदिर में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। पुण्यार्क सूर्य मंदिर गंगा किनारे स्थित एकमात्र मंदिर है। मंदिर के निर्माण को लेकर प्रचलित जनश्रुति के अनुसार श्रीकृष्ण के पौत्र  साम्ब ने कुष्ठ के श्राप से मुक्ति को लेकर भगवान भास्कर की अराधना की थी। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर साम्ब़ से वर मांगने के लिए कहा। साम्ब ने रोग मुक्ति की प्रार्थना की। सूर्य देव के आशीर्वाद से साम्ब कुष्ठ से मुक्त हुए। इसके बाद साम्ब द्वारा भगवान सूर्य के मंदिर का निर्माण कराया गया था। पंडारक के सूर्य मंदिर में विराजमान सूर्य की प्रतिमा सात घोड़े वाले रथ पर सवार सूर्य की प्रतिमा है। पुण्यार्क सूर्य मंदिर का गर्भ गृह सूर्य के चक्के से ढका हुआ है। मंदिर के पुजारी शशि शेखर पाठक ने बताया कि इस मंदिर में पूजा करने से शरीर की व्याधियां दूर होती हैं। बंगाल,असम और झारखंड समेत दूरदराज के क्षेत्रों से भी लोग पूजा करने के लिए सालो भा यहाँ पहुंचते रहते  हैं। मनोज उपाध्याय ने बताया कि पंडारक सूर्य मंदिर 1934 में आए भूकंप के बाद क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से इसका जीर्णोद्धार कराया गया। 1973 में इस सूर्य मंदिर में संगमरमर आदि लगाया गया । बाहरी सौंदर्यीकरण का काम भी लगातार कराया जा रहा है । पंडारक सूर्य मंदिर की व्यवस्था का संचालन ग्रामीणों द्वारा बनाई गई कमेटी के द्वारा किया जाता  है।

२५ अगस्त को मन्दिर कमिटी के द्वारा वृहद आदित्यहृदयस्तोत्रम् का पाठ किया गया एवं शाम को हवन के उपरांत शिखुर और पुड़ी का प्रसाद वितरण किया गया |इस आयोजन में मुख्य आचार्य गोवर्धन पाठक, मनोज उपाध्याय, व्यवस्थापक भारत भूषण पाठक,उदय कुमार पाठक , बालकृष्ण उपाध्याय, दिनेश नारायण मिश्र, शशि शेखर पाठक, गोविन्द उपाध्याय आदि द्वारा पाठ किया गया एवं सैकड़ो की संख्या में ग्रामीण वहाँ उपस्थित थे|
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