खेल दिवस 29 अगस्त 2020
जाने क्यों बच्चों को हैं सब खेलने से रोकते !
बातों-बातों में ही हैं हरदम उसे बस टोकते ।।
रात-दिन पढ़ना ही पढ़ना और कुछ करना नहीं ।
क्यों पढ़ाई की उसे बस भट्ठियों में झोंकते !
खेलने देते उसे घर में नहीं बाहर नहीं ।
खेल का मैदान बागीचा नहीं आहर नहीं ।
खेलने का नाम लेते ही उसे सब ठोकते ।
क्यों पढ़ाई की ही केवल भट्ठियों में झोंकते !
बंद होकर फ्लैट में बच्चे सभी अब कैद हैं ।
रोकने को गार्ड भी सब गेट तक मुस्तैद हैं ।।
रात-दिन रहते हैं बस अंग्रेजियत को घोंकते ।
क्यों पढ़ाई की ही केवल भट्ठियों में झोंकते !
चाहते माता-पिता कि टॉप उसका रैंक हो ।
हो कमाऊ पूत मेरा रोज भरता बैंक हो ।
दे दबावों का छुरा चारो तरफ से भोंकते ।
क्यों पढ़ाई की ही केवल भट्ठियों में झोंकते !
हर तरफ है कैमरा रहते गड़ाये नैन हैं ।
छीनकर बच्चों का बचपन छीनते चितचैन हैं ।
खेलना उतना बुरा भी है न जितना सोंचते ।
क्यों पढ़ाई की ही केवल भट्ठियों में झोंकते !
कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
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