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विवेक की अनुपस्थिति अहंकार

विवेक की अनुपस्थिति अहंकार

लेखक वेदप्रकाश तिवारी 
ज्ञान और विवेक दो शब्द हैं । यदि किसी के पास ज्ञान है और विवेक नहीं है तो पूरी संभावना है कि वह अहंकारी हो सकता है । जैसे रावण ज्ञानी होते हुए भी बहुत बड़ा अहंकारी था क्योंकि उसके पास विवेक नहीं था । और उसका अहंकार उसके विनाश का कारण बना । पर विवेक अगर ज्ञान के साथ जुड़ जाए तो फिर वह कहीं से भी अहंकार को पनपने नहीं देगा । यह सत्य है कि जो ज्ञानी नहीं है, विवेकी है उसके पास अपार धन संपदा आ जाए दुनिया की सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध हो जाएं फिर भी उसका स्वभाव सरल होगा और वह साधु कहलाएगा । अगर किसी के पास ज्ञान और विवेक दोनों है तो फिर वह मानवीय गुणों से संपन्न व्यक्ति कहलाएगा।

अहंकार का जन्म मूर्खता से होता है । अहंकार और मूर्खता एक दूसरे के परिचायक हैं ।
आदमी के जीवन में कभी कभार वह क्षण भी आता है जब
उसे किसी के द्वारा कटु वचन बोल दिया जाता है या उसके साथ कोई अनुचित व्यवहार कर जाता है । यह सारी बातें अपमान की श्रेणी में आती हैं। जब कोई किसी का अपमान करता है तो सच में वह उसका अपमान नहीं करता बल्कि वह अपने संस्कार का परिचय देता है या यूं कहें कि वह अपनी मूर्खता का परिचय देता है । जो अपने आपको अपमानित महसूस करता है उनमें से कुछ लोग अपने जीवन में बड़ा बदलाव लाते हैं या कहें कि उनका जीवन निखर जाता है
कुछ लोग उस अपमान को याद रखते हुए उससे बदले की भावना रखते हैं । कुछ लोग अपमान की वजह से उम्र भर कुंठित रहते हैं

महाभारत का पूरा युद्ध केवल और केवल अपमान की आधारशिला पर खड़ा है । अपमान करने वाला आदमी अहंकारी होता है और अहंकार की यही वृत्ति होती है कि कोई अपनी गलती मानने को राजी नहीं होता और आरोप-प्रत्यारोप में पूरा जीवन निकल जाता है ।
हमारी सामाजिक छवि और प्रतिष्ठा पर जब कोई आघात करता है तो अपना आपा ना खोते हुए पूर्ण संयम के साथ उसी समय अपमानित करने वाले व्यक्ति की बातों का या घटनाक्रम का पूरे विवेक के साथ आकलन करें या पता लगाएं कि अपमान करने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है ।अपमान का कारण या उद्देश्य जान लेने पर हम यह तय कर सकते हैं कि क्या यह जानबूझकर किया गया कार्य था या अनजाने में की गई घटना थी ।
यदि कोई आपका बेवजह अपमान कर रहा है तो यह इस बात का सबूत है कि आप उस इंसान से बेहतर हैं और वह ईर्ष्या बस आपका अपमान करता है ।इसलिए उसकी बातों को तवज्जो न देते हुए बिल्कुल सकारात्मक बने रहे। अगर आपको लगता है आपका बेवजह अपमान हुआ है तो इस बात को नजर अंदाज करें । इससे सामने वाले को यह महसूस हो जाएगा कि आपके जीवन में बेकार की बातों का कोई मतलब नहीं है । यह भी ध्यान रखें कि जो आपका अपमान कर रहा है उसका व्यक्तित्व कैसा है , उसकी मानसिक स्थिति कैसी है, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी का अपमान करते करते थक जाते हैं पर वह आदमी कोई जवाब नहीं देता है तो अगला आदमी उसे नीचा दिखाने के के लिए उसके ऊपर चारित्रिक दोष लगाता है। ऐसी स्थिति में संयम बरतें । उस व्यक्ति के सामने अपने आपनी सफाई ना दें। आप जितनी सफाई देंगे वह उतना ही अपने कुतर्कों से आपको परेशान करेगा ।
आप लोगों ने सोशल मीडिया पर कभी किसी के द्वारा अभद्र टिप्पणी से लोगों को परेशान होते देखा होगा।अगर ऐसी स्थिति आपके साथ हो तो सबसे पहले आप उसे ब्लॉक करें या फिर उसका जवाब ही ना दें यदि आपने उसका जवाब दिया तो वह आपकी शालीन भाषा को आपकी असहजता समझकर पुनः अभद्रता करेगा । इसलिए उसे जवाब देने का मतलब है कि आप उसे महत्व दे रहे हैं । इसलिए इससे बचें ।
आप लोगों ने आपने पढ़ा होगा कि पंडित मदन मोहन मालवीय बीएचयू के निर्माण के लिए किसी के पास धन मांगने गए थे और वह आदमी मालवीय जी का अपमान किया था पर उन्होंने उसके अपमान को अपना हथियार बना लिया । उसके आगे की घटना आप सबको पता है ।
चाणक्य का भी अपमान हुआ था । उसके बाद से लेकर चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने तक की घटना आप सबने पढ़ी होगी । इसलिए अपमान कभी-कभी जीवन को दिशा भी देता है और आदमी के अंदर कुछ कर गुजरने की क्षमता प्रदान करता है । इसलिए अपमान से घबराए नहीं अपने ऊपर भरोसा रखें और रचनात्मक कार्यों में लगे रहे ।
जब कोई आदमी किसी का अपमान करने के बारे में सोचता है तो वह क्रोध से भरा होता उसके अंदर ईर्ष्या कूट- कूट कर भरी होती है । उसकी मानसिक स्थिति खराब होती है। ऐसी वृत्ति उसकी चेतना के लिए घातक है। वह कभी भी अपने जीवन में मानसिक शांति नहीं पा सकता । कुछ लोग इसी तरह की जिंदगी जीते- जीते मर जाते हैं और समाज में अपने लिए अपमान छोड़ जाते हैं ।
अगर शास्त्रों के प्रसंग की बात करें तो अपमान कभी किसी का नहीं करना चाहिए और साधु पुरुष का तो बिल्कुल नहीं

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए। (उनकी मृत्यु निश्चित हो गई)। (शिवजी कहते हैं-) हे भवानी! साधु का अपमान तुरंत ही संपूर्ण कल्याण की हानि (नाश) कर देता है॥1॥
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥

-- वेद प्रकाश तिवारी
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