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हनुमान जी ने कैसे दिया था शनिदेव को दण्ड!!!

हनुमान जी ने कैसे दिया था शनिदेव को दण्ड!!!

 पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा, अवकाश प्राप्त अध्यापक

सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली

एक बार की बात है। शाम होने को थी। शीतल मंद-मंद हवा बह रही थी। हनुमान जी रामसेतु के समीप राम जी के ध्यान में मग्न थे। ध्यानविहीन हनुमान को बाह्य जगत की स्मृति भी न थी।

उसी समय सूर्य पुत्र शनि समुद्र तट पर टहल रहे थे। उन्हें अपनी शक्ति एवं पराक्रम का अत्यधिक अहंकार था। वे मन-ही-मन सोच रहे थे-मुझमें अतुलनीय शक्ति है। सृष्टि में मेरा सामना करने वाला कोई नहीं है। टकराने की बात ही क्या, मेरेे आने की आहट सेही बड़े-बड़े रणधीर एवं पराक्रमशील मनुष्ट ही नहीं, देव-दैत्य तक काँप उठते हैं। मैं क्या करूं, किसके पास जाऊँ, जहाँ दो-दो हाथ कर सकूं। मेरी शक्ति का कोई ढंग से उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।

जब शनिदेव यह विचार कर रहे थे, उनकी दृष्टि श्रीराम भक्त हनुमान पर पड़ी। उन्होंने हनुमान जी से ही दो हाथ करने की सोची। युद्ध का निश्चय कर शनि उनके पास पहुँचे।

हनुमान के समीप पहुँच कर अत्यधिक उद्दण्डता का परिचय देते हुए शनि ने अत्यन्त कर्कश आवाज़ में कहा-बंदर! मैं महाशक्तिशाली शनि तुम्हारे सम्मुख उपस्थित हूँं। मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। अपना फालतू का पाखण्ड त्याग कर खड़े हो जाओ, और युद्ध करो।

तिरस्कार करने वाली अत्यन्त कड़वी वाणी सुनकर भक्तराज हनुमान ने अपने नेत्र खोले और बड़ी ही शालीनता एवं शान्ति से पूछा-महाराज! आप कौन हैं और यहाँ पधारने का आपका क्या उद्देश्य है?’

शनि ने अहंकारपूर्वक कहा-मैं परम तेजस्वी सूर्य का परम पराक्रमी पुत्र शनि हूँ। जगत मेरा नाम सुनते ही काँप उठता है। मैंने तुम्हारे बल-पौरुष की कितनी गाथाएँ सुनी हैं। इसलिये मैं तुम्हारी शक्ति की परीक्षा करना चाहता हूँ। सावधान हो जाओ, मैं तुम्हारी राशि पर आ रहा हूँ।

हनुमान जी ने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक कहा-शनिदेव! मैं काफी थका हूँ और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूँ। इसमें व्यधान मत डालिये। कृपापूर्वक अन्यत्र चले जाइये।

घमण्डी शनि ने अहंकारपूर्वक कहा-मैं कहीं जाकर लौटना नहीं जानता और जहाँ जाता हूँ, वहाँ अपना प्रभाव तो स्थापित कर ही देता हूँ।

हनुमान जी ने बार-बार प्रार्थना की-देव! मैं थका हुआ हूँ। युद्ध करने की शक्ति मुझमें नहीं है। मुझे अपने भगवान श्रीराम का स्मरण करने दीजिए। आप यहाँ से जाकर किसी और वीर को ढूँढ लीजिए। मेरे भजन ध्यान में विध्न उपस्थिति मत कीजिए।

कायरता तुम्हें शोभा नहीं देता।घमण्ड से भरे शनि ने हनुमान की अवमानना के साथ व्यंगपूर्वक तीक्ष्ण स्वर मे कहा-तुम्हारी स्थिति देखकर मुझे तुम पर दया तो आ रही है, किंतु युद्ध तो तुमसे मैं अवश्य करूंगा।इतना ही नहीं, शनि ने हनुमान का हाथ पकड़ लिया और उन्हें युद्ध के लिये ललकारने लगे।

हनुमान ने झटक कर अपना हाथ छुड़ा लिया। शनि ने पुनः हनुमान का हाथ जकड़ लिया और युद्ध के लिये खींचने लगे।

आप नहीं मानेंगेधीरे से कहते हुए हनुमान ने अपनी पूंछ बढ़ाकर शनि को उसमें लपेटना शुरू कर दिया। शनि ने अपने को छुड़ाने का भरसक प्रयास किया। उनका अहंकार, शक्ति एवं पराक्रम व्यर्थ सिद्ध होने लगा। वे असहाय होकर बंधन की पीड़ा से छटपटा रहे थे।

अब राम-सेतु की परिक्रमा का समय हो गया।हनुमान उठे और दौड़ते हुए सेतु की परिक्रमा करने लगे। शनिदेव की सम्पूर्ण शक्ति से भी उनका बन्धन शिथिल न हो सका। हनुमान की विशाल पूंछ दौड़ने से वानर-भालुओं द्वारा रखे गये पत्थरों पर टकराती जा रही थी। वीरवर हनुमान जानबूझकर भी अपनी पूँछ पत्थरों पर पटक देते थे।

अब शनि की दशा बहुत दयनीय हो गयी थी। पत्थरों पर पटके जाने से उनका शरीर रक्त से लथपथ हो गया। उनकी पीड़ा की सीमा न थी और उग्रवेग हनुमान की परिक्रमा में कहीं विराम नहीं दिख रहा था। पीड़ा से व्याकुल शनि अब बहुत ही दुःखीत स्वर में प्रार्थन करने लगे-करुणामय भक्तराज! मुझ पर दया कीजिए। अपनी बेवकूफी का दण्ड में पा गया। आप मुझे मुक्त कीजिए। मेरे प्राण छोड़ दीजिए।

दयामूर्ति हनुमान खड़े हुए। शनि का अंग-अंग लहुलुहान हो गया था। उनके रग-रग में असहनीय पीड़ा हो रही थी। हनुमान ने शनि से कहा-यदि तुम मेरे भक्त की राशि पर कभी न जाने का वचन दो तो मैं तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ और यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें कठोरतम दण्ड प्रदान करूँगा।

वीरवर! निश्चय ही मैं आपके भक्त की राशि पर कभी नहीं जाऊँगा।पीड़ा से छटपटाते हुए शनि ने अत्यन्त आतुरता से प्रार्थना की-अब आप कृपापूर्वक मुझे शीघ्र बन्धन-मुक्त कीजिए।

भक्तवर हनुमान ने शनि को छोड़ दिया। शनि ने अपना चोटिल शरीर को सहलाते हुए हनुमान जी के चरणों में सादर प्रणाम किया और चोट की पीड़ा से व्याकुल होकर अपनी देह पर लगाने के लिये तेल माँगने लगे। उन्हें तब जो तेल प्रदान करता, उसे वे सन्तुष्ट होकर आशीष देते। कहते हैं, इसी कारण अब भी शनि देव को तेल चढ़ाया जाता है।

जी हो शानिमहाराज की,,,,,, भूलकर भी न खरीदें शनिवार को ये दस वस्तुओं को?

ज्योतिष शास्त्र में भी इसके कुछ नियम बताए गए हैं इन नियमो के मुताबिक आज हम आपको बताएँगे कुछ ऐसी वस्तुएं जो शनिवार को घर नहीं लानी चाहिए या इस दिन इन्हें नहीं खरीदना चाहिए।

लोहे का सामान - भारतीय समाज में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है कि शनिवार को लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शनिवार को लोहे का सामान खरीदने से शनि देव कुपित होते हैं। इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है। लोहे का सामान दान करने से शनि देव की कोप दृष्टि निर्मल होती है और घाटे में चल रहा व्यापार मुनाफा देने लगता है। इसके अतिरिक्त शनि देव यंत्रों से होने वाली दुर्घटना से भी बचाते हैं।

शनिवार को तेल खरीदने से भी बचना चाहिए। हालांकि तेल का दान किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार, शनिवार को सरसों या किसी भी पदार्थ का तेल खरीदने से वह रोगकारी होता है और घर में रोग बीमारी आती है

शनिवार को नमक बिलकुल भी नहीं खरीदना चाहिए अगर नमक खरीदना है तो बेहतर होगा शनिवार के बजाय किसी और दिन ही खरीदें। शनिवार को नमक खरीदने से यह उस घर पर कर्ज लाता है

कैंची ऐसी चीज है जो कपड़े, कागज आदि काटने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। पुराने समय से ही कपड़े के कारोबारी, टेलर आदि शनिवार को नई कैंची नहीं खरीदते। ऐसा मन जाता है की शनिवार को कैंची खरीदने से रिश्तों में तनाव आता है

शनिवार को पूजन में भी काले तिल का उपयोग किया जाता है। शनि देव की दशा टालने के लिए काले तिल का दान और पीपल के वृक्ष पर भी काले तिल चढ़ाने का नियम है, लेकिन शनिवार को काले तिल कभी न खरीदें। कहा जाता है कि इस दिन काले तिल खरीदने से कार्यों में बाधा आती है। लेकिन आप शनिदेव की पूजा के लिए पूजा सामान में काले तिल ले सकते है

अगर आपको काले रंग के जूते खरीदने हैं तो शनिवार को न खरीदें। मान्यता है कि शनिवार को खरीदे गए काले जूते पहनने वाले को कार्य में असफलता दिलाते हैं।

लेकिन शनिवार को रसोई के लिए ईंधन, माचिस, केरोसीन खरीदना वर्जित है। कहा जाता है कि शनिवार को घर लाया गया ईंधन परिवार को कष्ट पहुंचाता है।

झाड़ू खरीदने के लिए शनिवार को उपयुक्त नहीं माना जाता। झाड़ू घर के विकारों को बुहार कर उसे निर्मल बनाती है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। शनिवार को झाड़ू घर लाने से दरिद्रता का आगमन होता है।

अनाज पीसने के लिए चक्की भी शनिवार को नहीं खरीदनी चाहिए। माना जाता है कि यह परिवार में तनाव लाती है और इसके आटे से बना भोजन रोगकारी होता है।

कागज, कलम और दवात आदि खरीदने के लिए सबसे श्रेष्ठ दिन गुरुवार है। शनिवार को स्याही न खरीदें। यह मनुष्य को अपयश का भागी बनाती है।


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