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कोरोना संकट के बीच विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस कितना प्रासंगिक ?

कोरोना संकट के बीच विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस कितना  प्रासंगिक ? 

वेद प्रकाश  तिवारी 

किसी देश की खाद्य सुरक्षा तब सुनिश्चित होती है जब उसके सभी नागरिकों को भोजन उपलब्ध होता है । 

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार खाद्य सुरक्षा का अर्थ है, “सभी व्यक्तियों की सभी समय पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक आहार तक भौतिक, सामाजिक और आर्थिक पहुँच हो और जो उनके सक्रिय तथा स्वस्थ जीवन के लिये उनकी आहार आवश्यकताओं तथा भोजन वरीयताओं को भी संतुष्ट करें।” इस परिभाषा के अनुसार खाद्य सुरक्षा में स्वाभाविक रूप से पोषण सुरक्षा का भी समावेश है

'संयुक्त राष्ट्र ने स्पष्ट रूप से कहा है कि " हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन की रक्षा के लिए मैदान से लेकर मेज तक सभी की भूमिका अहम् होती है ताकि यह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचा सके" । 

संयुक्त राष्ट्र के बयान से स्पष्ट है कि खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता सभी की जिम्मेदारी है। खाद्य पदार्थों और खाद्य उत्पादों के उपभोक्ता के रूप में, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप खाद्य सुरक्षा के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखें। यदि नहीं, तो आप कुछ घातक खाद्य जनित बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं।
अनुमानित रूप से खाद्य जनित बीमारियों के 600 मिलियन मामलों के साथ - दुनिया में 10 में से लगभग 1 व्यक्ति दूषित खाने के कारण बीमार पड़ जाते हैं, दुनिया भर में हर देश, छोटे से लेकर बड़े, अमीर से लेकर गरीब, खाद्य जनित बीमारियों से पीड़ित है, लेकिन आज ऐसा नहीं है। आपूर्ति विभाग खाद्यान समस्याओं को काफी हद तक हल करने में सफल हो गया है। 

- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग मानता है कि ‘‘भोजन का अधिकार गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार का अविकल हिस्सा है और अधिकार की प्राप्ति को सुनिश्चित करने के लिये राज्य की क्या भूमिका होना चाहिए, इसको समझने के लिये अनुच्छेद-21 के साथ अनुच्छेद-39 (अ) {राज्य सभी नागरिकों, स्त्री और पुरुषों सभी को समान रूप से जीने के पर्याप्त साधन का अधिकार दे} और अनुच्छेद-47 {राज्य लोगों के पोषण और जीवन स्तर को उन्नत करने को अपनी जवाबदेही के तौर पर लेगा} को भी पढ़ा जाना चाहिए। अतः स्पष्ट है कि भूख से मुक्ति एक मौलिक अधिकार है। भुखमरी इस अधिकार का हनन करती है।’’(राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग 37-3-97-एलडी)।

भारत सरकार ने संसद द्वारा पारित, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,2013 दिनांक 10 सितम्‍बर,2013 को अधिसूचित किया है,जिसका उद्देश्‍य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों को वहनीय मूल्‍यों पर अच्‍छी गुणवत्‍ता के खाद्यान्‍न की पर्याप्‍त मात्रा उपलब्‍ध कराते हुए उन्‍हें मानव जीवन-चक्र दृष्‍टिकोण में खाद्य और पौषणिक सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम में,लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के अंतर्गत राजसहायता प्राप्‍त खाद्यान्‍न प्राप्‍त करने के लिए 75%ग्रामीण आबादी और 50%शहरी आबादी के कवरेज का प्रावधान है,इस प्रकार लगभग दो-तिहाई आबादी कवर की जाएगी। पात्र व्‍यक्‍ति चावल/ गेहूं/मोटे अनाज क्रमश: 3/ 2/1 रूपए प्रति किलोग्राम के राजसहायता प्राप्‍त मूल्‍यों पर 5 किलोग्राम खाद्यान्‍न प्रति व्‍यक्‍ति प्रति माह प्राप्‍त करने का हकदार है। मौजूदा अंत्‍योदय अन्‍न योजना परिवार,जिनमें निर्धनतम व्‍यक्‍ति शामिल हैं,35 किलोग्राम खाद्यान्‍न प्रति परिवार प्रति माह प्राप्‍त करते रहेंगे।

इस अधिनियम में महिलाओं और बच्‍चों के लिए पौषणिक सहायता पर भी विशेष ध्‍यान दिया गया है। गर्भवती महिलाएं और स्‍तनपान कराने वाली माताएं गर्भावस्‍था के दौरान तथा बच्‍चे के जन्‍म के 6 माह बाद भोजन के अलावा कम से कम 6000 रूपए का मातृत्‍व लाभ प्राप्‍त करने की भी हकदार हैं। 14 वर्ष तक की आयु के बच्‍चे भी निर्धारित पोषण मानकों के अनुसार भोजन प्राप्‍त करने के हकदार हैं। हकदारी के खाद्यान्‍नों अथवा भोजन की आपूर्ति नहीं किए जाने की स्‍थिति में लाभार्थी खाद्य सुरक्षा भत्‍ता प्राप्‍त करेंगे। इस अधिनियम में जिला और राज्‍य स्‍तरों पर शिकायत निपटान तंत्र के गठन का भी प्रावधान है। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्‍चित करने के लिए भी इस अधिनियम में अलग से प्रावधान किया गया है। 

जैसा कि हम सब जानते हैं खाद्य की उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए दो घटक हैं बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली । कई निर्धनता उन्मूलन कार्य क्रम भी चलाए जा रहे हैं--एकीकृत बाल विकास योजना, काम के बदले अनाज, दोपहर का भोजन, अंत्योदय अन्न योजना, इसके अलावा कुछ सहकारी समितियां हैं जो  काम कर रही हैं । कुछ गैर सरकारी संगठन भी हैं जो इस दिशा में योगदान दे रहे हैं । इस पर ज्यादा विस्तार में मैं नहीं जाना चाहता हम सीधे बात करते हैं कोरोना के इस संकट में खाद की उपलब्धता और गरीबों को मिलने वाले राशन या उससे संबंधित अन्य योजनाओं पर । 

कोरोना के संक्रमण और तालाबंदी के दौरान ही कृषि मंत्रालय ने कहा है कि वर्ष 2020-21 में भारत में 29.83 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होगा क्योंकि मानसून अच्छा और सामान्य रहेगा. इसमें से 2.56 करोड़ टन दालें होंगी. जबकि 27.27 करोड़ टन अनाज होगा. खाद्य मंत्रालय ने यह भी कहा कि कोरोना के कारण उत्पन्न होने वाली स्थितियों से हम निपटने में सक्षम हैं क्योंकि हमारे पास पर्याप्त अनाज भण्डार है और आने वाले महीनों में रहेगा.   

पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के तमाम इलाकों में गरीबों को राशन मिलने लगा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सरकार ने देश के 80 करोड़ गरीबों को इस योजना के तहत राशन बांटने का लक्ष्य तय किया है ताकि कोरोना के लॉकडाउन के बीच कोई भूखा न रहे। देश के समस्त गरीबों को भोजन मुहैया कराने का लक्ष्य लेकर शुरू की गई इस स्कीम को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से 26 मार्च को लॉन्च किया गया था। आम दिनों में खाद्यान्न सुरक्षा योजना के तहत देश के गरीब परिवारों को सरकार की ओर से राशन मुहैया कराया जाता है। इस मेगा स्कीम के तहत सरकार ने 30 जून तक हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल मुफ्त देने और एक किलो दाल मुहैया कराने का वादा किया है। इससे पहले 5 किलो राशन जो सब्सिडी पर मिलता था, वह भी जारी रहेगा।

 केंद्र सरकार 1 जून 2020 से ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना लागू है । इसके जरिए पुराने और नए राशन कार्डधारक देश में किसी भी राशन की दुकान से कहीं भी राशन खरीद सकेंगे। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान हाल में इसकी घोषणा की थी। इसे राशनकार्ड पोर्टेबिलिटी कहा जा रहा है। फिलहाल उत्तर प्रदेश सहित 16 राज्य (आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश) और केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली के लाभार्थी आपस में राशन पोर्टबिलिटी का लाभ उठा सकेंगे। प्रवासी मज़दूरों को इस योजना का विशेष लाभ मिलेगा। प्रदेश स्तर पर राशन पोटेबिलिटी पहले से लागू है। अप्रैल में करीब 7.07 लाख राशन कार्ड धारकों ने इस सुविधा का लाभ उठाया। प्रदेश में इस सुविधा का सर्वाधिक लाभ गौतम बुद्ध नगर में 11.50 प्रतिशत और उसके बाद लखनऊ में 8.50 प्रतिशत लोगों ने लिया। 

किसान सम्मान योजना और जन धन योजना के तहत भी सरकार ने किसानों को राहत पहुंचाने का काम किया है ।उनके खातों पर सीधा पैसा आ जाने से उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खरीदने और कृषि संबंधी कार्यों को सुलभ बनाने में सुविधा मिली है  । 

अब कुछ अति महत्वपूर्ण बात जो भारत के संदर्भ में जानना बहुत जरूरी है

पिछले साल 2019 में ही भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की पांत में 102वें पायदान पर लुढ़क चुका था। यहां तक कि हम पड़ोसी पाकिस्तान, बंग्लादेश और नेपाल से भी पिछड़े हैं। इसमें कहा गया था कि 2014 के बाद भारत में भुखमरी को लेकर हालात में बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया था।

यही नहीं वेल्थ हंगर हिल्फे एंड कन्सर्न वर्ल्‍डवाइड की तैयार की गई रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत दुनिया के उन 45 देशों में शामिल है जहां भुखमरी काफी गंभीर स्तर पर है।इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के तहत ग्लोबल फूड सिक्योरिटी ने हाल ही में भारत की इस चिंता को बढ़ा दिया है कि यदि खाद्य सुरक्षा प्रबंधन को ढंग से लागू नहीं किया गया तो पूरी दुनिया में अनाज का भीषण संकट खड़ा हो जाएगा।

  कोरोना संकट में लगभग सभी उपक्रम रोक दिए गए । छोटे से छोटा व्यापार बंद कर दिया गया । बस वही सेवाएं चलायमान हैं, जो जीवन के लिए बुनियादी हैं ।  ज़रा सोचिये कि जब सब-कुछ रोक दिया जाता है, तब भारत जैसे देश में लोग अपना जीवनयापन कैसे करते होंगे? और कुछ हो न हो, बच्चों को उनके जीवन के लिए जरूरी भोजन और सुरक्षा कैसे हासिल होती होगी? जिनके पास कोई जमापूंजी या साधन-संसाधन नहीं है, उनके लिए एक दिन की तालाबंदी का असर भी कितना गहरा होता होगा? भारत में कुछ घंटों के मोहलत पर 21 दिन के लिए तालाबंदी की घोषणा कर दी गयी । जिस देश में एक समय में 5 करोड़ लोग रोजगार के लिए पलायन पर रहते हों, वे सब वहीं 'फंस' गए जहां वे थे ? उद्योगों और उपक्रमों से आह्वान किया गया कि वे अपने कामगारों और श्रमिकों को वेतन देते रहें और उन्हें काम से न निकालें, इसके बावजूद अरबों-खरबों के व्यापारियों ने लोगों को रोज़गार से निकलना शुरू कर दिया है । वे सरकार से करों में छूट और आर्थिक पैकेज के लिए मोलभाव कर रहे हैं, किन्तु किसान सरकार को ब्लैकमेल नहीं कर रहा है.

सरकार इतनी सी बात नहीं समझ पायी जब संकट छाता है, तो लोग हर परिस्थिति में अपने गांव-घर पहुंच जाना चाहते हैं। उन्हें कोई लोभ-लालच-आश्वासन रोक नहीं पाता है। वे मृत्यु या किसी दर्द से नहीं डरते हैं। यदि डरते तो 1000 किलोमीटर पैदल अपने घर की तरफ नहीं चलते। सरकार ने मजदूरों को वहीँ रोक दिया, जहां वे खड़े थे  । यह मजदूर अपने बाल बच्चों के साथ रेलवे लाइन के सहारे सड़कों के रास्ते खेत खलियान को रास्ते अपने घरों को निकलने लगे । कुछ दुर्घटना में ट्रेन से कट के मर गए । कई  वाहनों से धक्के  उनकी दुर्घटना से मर गए  ।भूख प्यास से पीड़ित यह लोग किसी के सहारे पर रोटी सब्जी पानी चाय बिस्किट पाते रहे । कईयों ने तो कई दिनों तक खाना नहीं खाया । ऐसे में इन मजदूरों के शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता कम हो गई यह मजदूर भूखे प्यासे अपने घर पहुंचे बुरी तरह से अस्वस्थ थे । उन्हें भोजन के साथ पौष्टिक आहार की आवश्यकता है जो उन्हें नहीं मिल रहा है ऐसे में वे उनके बच्चे उनका परिवार कुपोषण का शिकार हो रहा है यह भी एक गंभीर विषय है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लिए इनकी स्वास्थ्य की सुरक्षा पर चर्चा करना चिंतन करना चाहिए और तालमेल बैठाकर कोई जरूरी कदम उठाने चाहिए । 

प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख में कहा है कि ये बात ठीक है कि सरकार को समझदारी से पैसे खर्च करना चाहिए लेकिन ऐसा न हो कि इस चक्कर में जरूरतमंदों को ही राशन न मिल पाए।अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ऐसा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि मार्च 2020 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में 7.7 करोड़ टन अनाज पड़ा हुआ था जो कि बफर स्टॉक का तीन गुना है। आने वाले दिनों में अनाज के भंडारण की मात्रा बढ़ेगी ही क्योंकि रबी फसलों की खरीदी होने वाली है। इसलिए राष्ट्रीय अपातकाल के समय जो पहले के स्टॉक पड़े हैं उसे खाली किया जाना चाहिए, इसमें देरी करना बुद्धिमानी नहीं है।फिलहाल भारत की यह विडंबना रही है कि अन्न का विशाल भंडार होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी होते हैं। अगर इसके कारणों की पड़ताल करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट सिस्टम और भंडारण क्षमता के अभाव में अन्न की बर्बादी जैसे कारक सामने आते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और सरकार इसका हल खोज पाने में असफल रही है।ऐसे में अब कोविड-19 महामारी के बीच खाद्य सुरक्षा की समस्या और भी भीषण बन गयी है। सौभाग्य से हमारे पास अन्न के पहाड़ मौजूद हैं, जिनका तीव्र और विवेकपूर्ण इस्तेमाल इस संकट को बड़ी हद तक सुलझा सकता है। लेकिन इसके वितरण की चुनौती को हल करना पड़ेगा। नहीं तो भारत की एक बड़ी आबादी कोरोना से बच जाएगी लेकिन भूख का सामना नहीं कर पाएगी।
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