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निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा स्कूलों को बिजनेस हब बनाने के विरुद्ध शख्त क़ानूनी कार्रवाई हो

निजी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा स्कूलों को बिजनेस हब बनाने के विरुद्ध शख्त क़ानूनी कार्रवाई हो 
रमेश कुमार चौबे 
आज जहाँ देखिये निजी शैक्षणिक संस्थान कूकुरमुत्ते की तरह फ़ैल गए हैं I इनके बाईलॉज में केवल अलाभकारी शैक्षणिक गतिविधियों को ही संचालित करने का उल्लेख होता है I सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त करने एवं सीबीएससी,आईसीएसई तथा राज्य शिक्षा बोर्ड से सम्बद्धता प्रदान करने वाले प्रपत्र में स्कूल संचालकों को शपथपत्र में यह देना पड़ता है कि केवल अलाभकारी शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन होगा I इसके साथ ही साथ स्कूल मान्यता के मानदंड के नियमानुसार उचित शैक्षणिक डिग्रीधारी शिक्षकों का रिपोर्ट तथा मानदंड के अनुसार बिल्डिंग तथा खेलकूद ग्राउंड का शपथपत्र देना होता है कि जो भी सूचनाएं प्रपत्र में अंकित हैं सही और सत्य है अगर गलत हुआ तो क़ानूनी कार्रवाई के साथ मान्यता समाप्त करने का अधिकार सम्बद्धता प्रदान करने वाली एजेंसी को होगा I इसके साथ ही साथ प्रतिवर्ष ऑडिट रिपोर्ट तथा मानव संसाधन व इन्फ्रास्ट्रक्चर ऑडिट रिपोर्ट देना होता है I मनमानी फ़ीस वृद्धि के खिलाफ भी कानून बने हुए हैं जिसके गाईड लाईन अनुसार ही चलना है I शिक्षक बच्चों का अनुपात तथा स्कूल के क्लास में अधिकतम कुल कितने बच्चे एक साथ एक कमरा में बैठकर पढाई करेंगे यह सब क़ानूनी रूप से तय किये गए हैं I

लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों द्वारा शायद ही किसी नियम कानून का पालन होता है I आज निजी स्कुल संचालकों का एक ही मकसद किस तरह से अभिभावकों के जेब से जितना हो सके उनका खून चूस लो I शैक्षणिक गतिविधियाँ गुणवत्ता हीन हो गई हैं और इसके जगह स्कूल अनैतिक गैरकानूनी व्यापार का केंद्रबिंदु बन गया है I आज निजी स्कूलों में स्कूल संचालकों द्वारा कैंटीन से लेकर बच्चों के स्कूल यूनिफार्म,किताब,कॉपी,कलम सबकुछ क्वालिटी हीन और बाहर से काफी महंगे दामों पर खरीदने की बाध्यता हो गई है I स्कूल डेवलपमेंट के नाम पर,प्रत्येक साल री एडमिशन के नाम पर,खेलकूद मेटेरियल के नाम पर,वार्षिक आयोजन के नाम पर,बिजली पानी के नाम पर और कई ऐसे छोटे बड़े सभी उत्सवों के नाम पर प्रत्येक वर्ष प्रत्येक छात्रों से लिया जाता है I

“माल महाराज का मिर्जा खेले होली” और “हरे ना फिटकिरी रंग लागे चोखा” यथार्थ हो रहा है I सरकार ने घोषणा की थी कि स्कूल संचालक तीन महीने का फ़ीस कोरोना महामारी में ना लें और गार्जियन पर इस अवधि में कोई दबाव न बनायें I लेकिन शायद हीं कोई स्कूल सरकार के आदेश का पालन किया I बल्कि उल्टे कोरोना महामारी लौक डाउन में स्कुल फ़ीस देने के लिए,यूनिफार्म खरीदने के लिए किताब ,कॉपी सहित तमाम शैक्षणिक मेटेरियल खरीदने के लिए,यहाँ तक कि अब काफी महंगे सेनिटाईजर व मास्क स्कूल से ही खरीदने की बाध्यता हो गया है I ऐसे में यह सब देखते हुए मुझे कहना है कि स्कूल संचालकों को चक्कू, छुड़ा,रिवाल्वर लेकर लूटने का धंधा शुरू करना चाहिए I क्योंकि शायद इससे भी उनका लुट का महत्वाकांक्षा पूरा हो जाय I बिहार सरकार जब नियम कानून बनाई है और अनुपालन सुनिश्चित नहीं कराती है तो भी आम जनता के आँख में धुल झोंकने वाली कृत्य को पनाह देने वाली विशाल शिक्षा संचालन सिस्टम खोलने का औचित्य क्या है ? 

स्कूल संचालक व पब्लिसर तथा शैक्षणिक मेटेरियल्स के डिस्ट्रीब्युस्शर के बीच कॉन्ट्रेक्ट होने के कारण मध्यम वर्ग के छोटे स्टेशनरी दुकानदारों के बिजनेश बंद हो रहे हैं I जिसके कारण उनके परिवारों पर भी आर्थिक संकट इन स्कूल संचालकों के कारण आ गया है I स्कूल संचालकों द्वारा खुद का कैंटीन खोलने के कारण अनेकों गरीबों की रोजी रोटी मारी गई है जो टिफिन काल में स्कूल के बाहर कुछ खाद्यपदार्थ बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे I प्रत्येक स्कूलों ने अपने अपने ट्रांसपोर्टिंग विजनेस खोल लिए हैं और भेंड की तरह ठूस कर स्कूल ट्रांसपोर्टिंग कर रहे हैं और इसके नाम पर काफी मोटा रकम कमा रहे हैं I निजी स्कूल शोषक कार्पोरेट कल्चर की तरह संचालित हो रहा है जिसपर अविलंब रोक लगने चाहिए I सुप्रीम कोर्ट ने जब ग्रीष्मावकाश के दो महीने का स्कूल फ़ीस नहीं लेने के आदेश जनहित याचिकाओं पर दिए हैं उसके बावजूद भी तमाम फ़ीस यहाँ तक कि बिजली बिल बच्चों से वसूले जाते हैं I एक वर्ष में बच्चों से बिजली के नाम पर जितनी वसूली होती है उससे स्कूल संचालक कई वर्षों तक अपने स्कूल का बिजली बिल का भुगतान दे सकते हैं I लेकिन प्रति वर्ष अतिरिक्त कमाई बिजली के नाम पर भी स्कूल संचालक करते हैं I 

जब अभिभावकों द्वारा इसकी शिकायत संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के पास की जाती है तो उनके ढुलमुल रवैये के चलते कभी ठोस कार्रवाई नहीं होती है I जिसके चलते अभिभावक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अभिभावकों द्वारा हो हल्ला करने पर उनके बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है I उनको फेल किया जाता है व उनके बच्चे पर ध्यान नहीं दिया जाता है और तो और उनके बच्चे को क्लास रूम के सभी बच्चों के सामने खड़ा कराकर उन्हें जलील किया जाता है और एक तरह से मानसिक प्रताड़ना दिया जाता है I उनके द्वारा यहाँ तक बोला जाता है कि जब शिक्षा विभाग के एक संतरी से लेकर मंत्री तक यहाँ तक कि मुख्यमंत्री को भी कमीशन या फिर वार्षिक रैन्ड्सम मनी पहुंचा दिया जाता है तो वो क्या कर सकते हैं I बिहार के राज्यपाल,मुख्यमंत्री ,शिक्षा मंत्री,मुख्यसचिव,शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव,शिक्षा विभाग के सभी जिम्मेवार कंट्रोलिंग अधिकारीयों,बिहार सरकार के सिविल प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को सूचित करते हुए मांग करता हूँ कि नीति स्कूल संचालकों के अनैतिक अपराधिक गैरकानूनी कृत्य को जनहित में रोकने के लिए सभी अपने अपने अधिकार क्षेत्र में जिम्मेवारी और जबाबदेही तथा संवेदनशीलता के साथ कार्य कर मानवता का परिचय दें और शिक्षा को लुट का व्यवसाय बनाने वालों पर कारगर कार्रवाई सुनिश्चित करें I राज्य सरकार में मेरी मांग है कि तमाम निजी शैक्षणिक संस्थानों के संचालकों के और उनके परिवार और नजदीकी रिश्तेदारों के संपत्तियों की जांच के लिए जुडिशियल और आयकर विभाग की संयुक्त निगरानी एक्शन कमिटी बनाई जाय जिससे कि उनके गोरखधंधे का पता चल सके और उनकी काली कमाई का काला धन जब्त किया जा सके I या फिर सरकार निजी स्कूलों का उनके तमाम प्रोपर्टी के साथ अधिग्रहण कर ले I
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