बेरोजगारी के दर्द पर ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ का मरहम
हुनर की मुफलिसी दूर करने का
अभियान
‘प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण रोजगार योजना’
-मनोज
कुमार सिंह
जिंदगी
ने कर लिया स्वीकार, अब तो पथ यही है।
क्यों करूं आकाश
की मनुहार, अब तो पथ यही है।।
दुष्यंत
कुमार की यह पंक्तियां शहरों से गांव की ओर रिवर्स
माइग्रेशन को मजबूर मजदूरों की भावनाओं की अभिव्यक्त का चित्रण करती प्रतीत होती
हैं। कोरोना संक्रमण से निबटने के लिए लागू लॉकडाउन
से सबसे अधिक देश की श्रमशक्ति प्रभावित हुई। कोरोना संक्रमण ने सेहत के साथ
रोजगार पर गहरा चोट किया। शहरों की किस्मत गढ़ने वाले हाथ बेरोजगार हो गए। पूंजी ने
मुश्किल समय में श्रम को भुला दिया। तब, कठोर श्रम
से महानगरों के विकास की इबारत लिखने वाले श्रमिक (मजदूर) ठगा सा खाली हाथ अपने
गांव-घर लौट गए। श्रम के दिल पर पूंजी के दिए
जख्म इतने गहरे हुए कि शहरों की तरफ जाने वाले मजदूरों के पांव बांध दिए हैं।
फिलहाल तो मजदूरों ने ठान लिया है कि जैसा भी है, जैसे
भी रहें वे अपना घर, अपना गांव छोड़कर शहरों का रूख नहीं
करेंगे। हर कोई अब अपने परिवार के साथ रह कर गांव में ही दो जून की रोटी का जुगाड़
करने की जुगत में है। उन्हें ग्रामीण योजनाओं में काम मिलने की आस है। केंद्र
से लेकर राज्य सरकारों ने भी उनके भरण-पोषण का बंदोबस्त करने की ज़िम्मेदारी को
समझा है। बड़ी संख्या में श्रमिकों की बेरोजगारी सरकारों के लिए चिंता का विषय बन
गया। लिहाजा केंद्र से लेकर राज्य की सरकारों ने प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार
सृजन की पहल शुरू कर दी। त्वरित निदान मनरेगा बना। लेकिन, बेरोजगारों
की बड़ी संख्या को चंद योजनाओं से रोजगार उपलब्ध करा देना मुमकिन नहीं। किसी भी
आपदा में त्वरित सहायता की योजनाएं प्रभावी होती हैं। सरकारें भी प्रवासियों की
विकट स्थिति को देखते हुए उनके लिए स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के इंतजाम में जुट
गईं। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 50 हजार
करोड़ रुपये की शॉर्ट टर्म मेगा जॉब स्कीम शुरू की है। इस योजना का सकारात्मक पक्ष
यह है कि इसको प्रवासी मजदूरों की क्षमता और जरूरत को ध्यान में रखते हुए तैयार
किया गया है।
प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण रोजगार अभियान नाम की इस योजना में शहरों से आए मजदूरों को 125 दिन
काम मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना देश के उन 116 जिलों
के लिए लागू की गई है, जहां
शहरों से लौटे प्रवासी मजदूरों की संख्या कम से कम 25 हजार
है। इसका मकसद कामगारों को उनकी रुचि और कौशल के तहत
रोजगार और स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। राज्य
सरकारों द्वारा करायी गई स्किल मैपिंग के आधार पर हर किसी को यथासंभव उसके कौशल के
अनुरूप काम मुहैया कराने वाली इस योजना के तहत रोजगार देने के साथ ही संबंधित
जिलों में स्थायी निर्माण कार्य भी संपन्न किया जाएगा।
प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण रोजगार अभियान योजना में 6 राज्यों
के 116 जिलों में बिहार के 32, उत्तर
प्रदेश के 31, मध्य प्रदेश के 24, राजस्थान
के 22, ओडिशा के 4 और
झारखंड के 3 जिले शामिल हैं। इन राज्यों में करीब 88 लाख
प्रवासी मजदूरों के अन्य राज्यों से लौटने का अनुमान है। इस अभियान के तहत ग्रामीण
विकास, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, पंचायती
राज, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, रेलवे, नई
और नवीकरणीय ऊर्जा, खान, पेयजल
और स्वच्छता, पर्यावरण, सीमा
सड़क, दूरसंचार और कृषि के क्षेत्र में श्रमिकों को
रोजगार उपलब्ध कराया जाना है। यह अभियान मिशन मोड में चलाया जाएगा। जिन श्रमिकों
को राज्य सरकार वापस लेकर आई है, या अन्य
साधनों से उन्हें वापस भेजा गया है, उनकी सूची
पहले से ही सरकार के पास है और इसी के आधार पर श्रमिकों को काम दिया जाना है। इन
कामों में सामुदायिक स्वच्छता परिसर का निर्माण, ग्राम
पंचायत भवन, राष्ट्रीय राजमार्ग के काम, कुओं
का निर्माण, आंगनवाड़ी केंद्र का काम, पीएम
आवास योजना का काम, ग्रामीम सड़क और सीमा सड़क, पीएम
कुसुम योजना, पीएम ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट, पशु
शेड बनाने का काम, केंचुआ खाद यूनिट तैयार करना, पौधारोपण, जल
संरक्षण और संचयन, भारतीय रेलवे के तहत आने वाले
कामों की तरह ही अन्य कामों को भी शामिल किया गया है।
प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण रोजगार अभियान को बिहार के खगड़िया जिले से लांच किया गया है। बिहार ही
नहीं देश की करीब 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है।
पहले से ही तंगहाल गांव बेरोजगार प्रवासियों के बोझ के साथ चलने में और लड़खड़ाने
लगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान देश की
गरीब आबादी को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम है। लॉकडाउन के दौरान शहरों से
गांव लौटी प्रतिभाएं अब ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देंगी। युद्ध अथवा
महामारी की स्थिति में आत्मनिर्भरता की जरूरत नीति निर्माताओं को समझ में आ रहा
है। लॉकडाउन के बाद 20 लाख करोड़ का पैकेज,
मनरेगा के लिए अतिरिक्त 40 हजार करोड़
आवंटन और गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत रोजगार की त्वरित व्यवस्था कोरोना से
लड़खड़ा चुके लोगों को न सिर्फ तत्काल सहारा मिलेगा, बल्कि
भविष्य गढ़ने का रास्ता भी खुलेगा। इसके आलावा जो निर्माण कार्य होंगे उससे गांव के
लिए असेट खड़ा होंगे। आत्मनिर्भर भारत का सपना भी इसी राह से पूरा हो सकेगा। इस
योजना को लेकर यह सवाल उठ सकता है कि 125 दिनों के
बाद क्या होगा? फिलहाल जो स्थिति बनी है उसके लिए दीर्घावधि की योजनाओं से इसका
महत्त्व ज्यादा है। आपदा के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट की घड़ी में तत्काल रोजगार की
उपलब्धता सुनिश्चित होने से मजदूरों के सामने रोजगार के लिए फिर पलायन की मजबूरी
नहीं होगी। अपने आस-पास मजदूरों को रोजगार मिलेगा, तो
सरकार को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत गांवों में स्थाई रोजगार सृजन की दिशा में
योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का वक्त मिलेगा। उदारवादी अर्थव्यवस्था के दौर में
केंद्र ने ग्राम अर्थव्यवस्था की जो रूपरेखा तय की है, उसमें
श्रमिकों का गांव में टिकना जरूरी है। समझा जाता है कि 125 दिनों
में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत गांवों में सूक्ष्म, लघु
और कुटीर उद्योगों को अमलीजामा पहनाया जा सकेगा। कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना
के बाद व्यापक रोजगार सृजन संभव होगा।
उम्मीद
किया जा रहा है कि तब न सिर्फ प्रवासियों के स्थायी रोजगार की समस्या हल हो जायेगी,
बल्कि शहरों पर आश्रित गांवों के आत्मनिर्भर बनने की गति भी तेज
होगी। मनरेगा के तहत काम मिलने की शुरुआत,
आत्मनिर्भर भारत योजना और उसके बाद गरीब कल्याण रोजगार अभियान से
गांव और प्रवासी श्रमिकों की उम्मीदों को पंख मिला है। अबतक शहरों को संवारने वाले
हाथ अब गांवों के विकास की इबारत लिखने का संकल्प लेते दिख रहे हैं। प्रवासियों
को सरकार की ऐसी पहल की जरुरत थी, ताकि
रोजी-रोटी के लिए उन्हें एकबार फिर पलायन के दर्द से न गुजरना पड़े। शहरों के बजाय
गांव, अपने जिला और अपने प्रदेश के विकास के संकल्प को लेकर प्रवासी मुखर
हैं। इस योजना के लॉन्चिंग में बिहार के मुख्यमंत्री ने प्रवासियों की इस भावना को
साझा किया था। प्रवासी कह रहे हैं कम कमाएंगे लेकिन बाहर नहीं जाएंगे। हालिया
रोजगारपरक योजनाओं से वे आशान्वित हैं। भले ही उन्हें शॉर्ट टर्म जॉब हासिल हो,
लेकिन अपना भविष्य अब अपने घर-गांव में ही संवारेंगे। उनके संकल्प
पर दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं।
इस
नदी की धार में, ठंडी हवा आती तो है।
नाव
जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।।
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