योग-दिवस
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
आज योग दिवस है।सरकार ने आज के दिन को योग के नाम समर्पित किया है।होना भी चाहिए।पर कुछ ध्यान देकर के।पर यहां हमारा ध्यान नहीं बल्कि सरकार के फरमान पर ध्यान ज्यादा दिया जाता है।सिर्फ खानापूर्ति या फोटो खीचाऊ फैशन के लिए।
योग शब्द बडा व्यापक है।संयोग से दुर्योग तथा सहयोग से अयोग तक इसी योग की महिमा से मंडित हैं।अभी जो योग दिवस मनाया जा रहा है वह एक शारीरीक क्रिया कम राजनैतिक क्रिया ज्यादा है।
योग की परिभाषा कोई निश्चित नहीं है।यह अपनी व्यापकता के कारण भिन्न-भिन्न कर्ता-कर्म-क्रियारोपी है।योग को कहीं 'कार्य की कुशलता तो कहीं समता को 'योग नाम दिया गया है।पर सब से सटिक और विश्वासनीय परिभाषा उसके कुशल चितेरे महर्षि पतँजली ने दी है।
योग वास्तव में भारतीय जीवन पद्धति का नाम है।
हम भारतवासीयों का जीवन क्रियात्मकता के रूप में जाना जाता था।हमारा जीवन केवल सैध्दांतिक नहीं बल्कि व्यवहारिक था।हमारे देश में जैसे-जैसे विदेशजों का घुसपैठ होता गया वे हमारे समाज और सिद्धांतों को रूढि, अनर्गल और अव्यवहारिक कह कर नकार दिया।उपर से इसे ब्राह्मणों का भ्रमजाल कह कर हमारे लोगों को बर्गला दिया।बर्गलाया हीं नही वह हमारी दिनचर्या को लुप्तप्राय कर दिया।हम भी कम नहीं थें प्रगतिशीलता के नंगी और अंधी दौड में हम उन्ही की बातो को ब्रह्मवाक्य और क्रिया समझकर आत्मसात किया।परिणाम सामने है।
योग का मतलब है चित की दुष्प्रवृत्तियों का समन।पर हम बहुत दिनों से इसी का शिकार बने हुए हैं।'बसुधैवकुटुम्बकम'के उद्घोषक को आज भाईचारा सिखाया जा रहा है यह क्या है?आप खुद समझ लें।
आज योग का प्रचार किया जा रहा है।बैनर और पंडाल लगाकर फोटो खींचा जा रहा है।बडी हास्यास्पद स्थिति है।आज योगी को बदनाम किया जा रहा है और योग की भी महिमा बताई जा रही है।ये दोमुँही बात जँचती नहीं है।खैर जो हो पर लोग आज इस योग में अपना योग दे रहे हैं यही बहुत है।
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
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