Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हनुमानजी की उपासना एवं उसका शास्त्राधार

हनुमानजी की उपासना एवं उसका शास्त्राधार

१. हनुमानजी की उपासना का उद्देश्य

अन्य देवताओं की तुलना में हनुमानजी में अत्यधिक प्रकट शक्ति है । अन्य देवताओं में प्रकट शक्ति  केवल १० प्रतिशत होती है, जबकि हनुमानजी में प्रकट शक्ति ७० प्रतिशत होती है । अत: हनुमानजी की उपासना अधिक मात्रा में  की जाती है । हनुमानजी की उपासना से जागृत कुंडलिनी के मार्ग में आई बाधा दूर होकर कुंडलिनी को योग्य दिशा मिलती है । साथही भूतबाधा, जादू-टोना, अथवा पितृदोष के  कारण होनेवाले कष्ट, शनिपीडा इत्यादि का निवारण भी होता है । 

२. शनि की ग्रहपीडा एवं हनुमानजी की उपासना
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि स्वराशी से निकलकर विशिष्ट स्थान में आता है तब उस व्यक्ति के जीवन में शनि की ग्रहपीडा आरंभ होती है । ग्रहदशा का यह  काल सामान्यत: साढे सात वर्षों का होता है । इस काल में व्यक्ति को जीवन में विविध समस्याओं का सामना करना पडता है । उसमे जीवन में आरोग्यविषयक, आर्थिक स्वरूप की तथा अन्य मानसिक समस्याएं निर्माण होती हैं । शनि की पीडा के  कारण निर्माण हुई इन समस्याओं के निवारण के लिए हनुमानजी की उपासना विशेष फलदायी होती है । इसका कारण यह है कि शनि स्वयं रुद्र की उपासना करते हैं एवं हनुमानजी ग्यारहवें रूद्र हैं । इसलिए हनुमानजी की उपासना करने से शनि की पीडा का निवारण होता है ।

३. शनि ग्रहपीडा निवारणार्थ हनुमानजी की उपासना विधि
यह विधि शनिवार अथवा मंगलवार के दिन की जाती है । एक कटोरी में तेल लें । उसमें काली उडद के चौदह दाने डालें । अब उस तेल में अपना चेहरा देखें । इसके उपरांत यह तेल हनुमानजी के देवालय में जाकर हनुमानजी को चढाएं । खरा तेली शनिवार के दिन तेल नहीं बेचता, क्योंकि जिस शक्ति की पीडा से छुट कारा पाने के लिए कोई मनुष्य हनुमानजीपर तेल चढाता है, वह शक्ति तेली को भी कष्ट दे सकती है । इसलिए हनुमानजी के देवालय के बाहर बैठे तेल बेचनेवालों से तेल न खरीदकर घर से ही तेल ले जाकर हनुमानजी को चढाएं ।

४. शनि की साढेसाती का प्रभाव अल्प करने के लिए हनुमानजी की उपासना किस प्रकार करनी चाहिए ?
विधि के प्रति भाव न बना रहे, तो इस उपासना का प्रभाव कुछ समय उपरांत अल्प होता है । वैसे ही मदार के पत्र एवं पुष्प के परिणामस्वरूप अल्प हुआ अनिष्ट शक्ति का प्रभाव, पत्र तथा पुष्प के चैतन्य के अल्प होनेपर पुनः बढने की आशंका रहती है । कष्ट को समूल अल्प करने के लिए हनुमानजी का नामजप निरंतर करना यही एक उत्तम साधन है ।

५. हनुमान जयंती के दिन हनुमानजी के नाम का जप करने का महत्त्व
हनुमान जयंती को हनुमानजी का तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक हजार गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस कारण हनुमानजी की चैतन्यदायी तत्त्वतरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं । इन तरंगों का जीव को व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक, दोनों स्तरोंपर लाभ होता है । इन कार्यरत तत्त्वतरगों का संपूर्ण लाभ पाने के लिए इस दिन ‘श्री हनुमते नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए । 

६.  कालानुसार आवश्यक उपासना
आजकल विविध प्रकारों से देवताओं का अनादर किया जाता है । व्याख्यान, पुस्तक, नाटि का इत्यादि के माध्यम से देवताओं की अवमानना  की जाती है । व्यावसायिक हेतु से विज्ञापनों के लिए देवताओं का उपयोग ‘मॉडेल’ के रूप में किया जाता है । देवताओं की वेशभूषा में भीख मांगी जाती है । व्यंगचित्र अर्थात्  कार्टून, विज्ञापन, नाटि का, इन में ऐसी अवमानना ह में विशेषरूप से दिखाई देती है । देवताओं की उपासना की नींव है, श्रद्धा । देवताओं का अनादर श्रद्धा को प्रभावित करता है । इस से धर्महानि भी होती है । यह धर्महानि रोकना  कालानुसार आवश्यक धर्मपालन ही है । यह देवता की समष्टि स्तर की अर्थात सामाजिक स्तर की उपासना ही है । व्यष्टि अर्थात व्यक्तिगत उपासना के साथ समष्टि अर्थात सामाजिक उपासना किए बिना देवता की उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती । अतः हनुमानजी के भक्तों को भी हनुमानजी के अनादर के प्रति जागरूक होकर सार्वजनिक उद्बोधन के माध्यम से यह धर्महानि रोकने का प्रयास करना चाहिए । यह धर्महानि रोकने के लिए हनुमानजी हमें बल, बुद्धि तथा क्षात्रवृत्ति प्रदान कर साधना में आनेवाले विघ्नों का अवश्य हरण करेंगे ।
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ – श्री हनुमान)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ