जीवन का धर्म!
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संजय कुमार मिश्र"अणु"
जीवन धर्म सभी धर्मों से होता सबसे उपर!
एक धर्म जीवन की रक्षा बहुत बडा है भू पर!!
जीवन का उत्कर्ष लाने में यदि धर्म हो बाधक!
उसका भी अतिक्रमण करते हैं महामनस्वी साधक!!
यदि धर्माधर्म पाप-पुण्य में,जीवन ग्रस जाता है!
महामोह के पतितपंक में मानव फंस जाता है!!
जो जीवन के लिए जरूरी हो वह धर्म कहा जाता है!
कर्मक्षेत्र का कर्म विविध बस कर्म कहा जाता है!!
धर्म-कर्म है श्रेष्ठ मनुज का,जो ऐसा लेता मान!
सुखमय जीवन उसका होता और निश्चित कल्याण!!
गीता का आदर्श यही है,यही है रामायण का सीख!
जीवन का संदर्भ सोंच बस पाप-पुण्य मत लिख!!
अपना- अपना धर्म है, अपना -अपना कर्म!
सब के अपने हाथ हैं, सबका अपना मर्म!!
वह अधर्मी है हम धर्मी हैं,ऐसा कहना हीं है पाप!
अपने कर्म धर्म पर वह है,चलो आप चुपचाप!!
भले बुरे पर समय बिताना,अति निद्य कहा है लोगों नें!
ऐसा दृश्य दिखाया जग को अजब गजब संयोगों नें!!
---:भारतका एक ब्राह्मण.
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