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को-को


को-को


लेखक -विनोद सिल्ला
बचपन में को-को
मेरी मनपसंद चीजों को
एका-एक
बिलकुल मेरे सामने से
कर देती थी गायब
कहते थे परिजन
फलां चीज को
ले गई को-को

नामुराद को-को
अब भी नहीं छोड़ रही पीछा
आ जाती है अक्सर
न्यूज चैनल्स पर

भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, पलायन
पुलिसिया उत्पीड़न
जीवन रक्षक उपकरणों की
कमी सहित
कितने मद्दों को
कर जाती है गायब

को-को बचपन की बात
अलग थी
अब तो रहम कर


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