आज के दोहे

जाहिल निपट गवाँर ही,जोड़े रोज़ ज़मात ।
वख़्त बुरा आया मगर,दिखा रहे औकात ।।
उजियारा सहमा खड़ा, हँसे अँधेरा खूब ।
उनसे शायद जा मिले,फिर अपने महबूब।।
शैतानी करने लगी, शैतानों की जात ।
मौका इनको जब मिला ,दिया घात पर घात।।
गद्दारों ने कर दिया,गद्दारी का काम ।
जितना आया पास था,उतना दूर मुकाम।।
सही योजनायें सदा ,कर देते हैं फेल।
बहुत ज़रूरी हो गया,डाली जाय नकेल।।
जिनके 'ब्लड' में है घुली,नफरत की तासीर।
वह कब कर पाये यहाँ,मानवता तामीर।।
आपस में मत बोइये ,नफरत वाली नीम ।
पता नहीं है क्या तुम्हें,है उस्ताद हकीम ।।
~जयराम जय,
'पर्णिका',बी-11/1,कृष्ण विहार,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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