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संवेदना!


संवेदना!

मुझे बेहद आश्चर्य होता है,
जब देखता हुं कि-
संवेदना भी किसी खास,
जाति,धर्म,वर्ग के प्रति व्यक्त होती है।।
        हमारे साथ बहुत से लोग हैं,
        उन्हें नहीं देखा आंसु बहाते,
        पालघर की घटना पर-
        पर वे आज-
        उसके इंतकाल पर
        जार-बेजार हैं।।
हमारी बारी पर चुप थे,
वे आज बाचाल हैं,
मानो न मानो तेरी मर्जी-
इसमें भी चाल है,
मुझे नहीं है कुछ लेना देना।
बस खोज रहा हुं संवेदना।।
          क्या संवेदना ऐसी होती है,
          किसी खास को देख हंसती रोती है,
         यदि ऐसा तो गलत है-
         संवेदना तो मानवीय दौलत है।। 
तुम भले बात करते रहो आदमियत की,
पर मैं जानता हुं ओ बात इंसानियत की,
तुम्हारी संवेदना कुछ खास है
इसका मुझे हुआ एहसास है
          संवेदना में पहले सम है
         पर तुम्हे सिर्फ उसके लिए गम है
         हमारी हत्या भी हो जाय तो क्या
         हर ज्यादती भी हम पर कम है
मैं पुछता हुं ये कैसी संवेदना है?
जो मेरे लिए नहीं उसके लिए वेदना है।।
          समझ रहे हो न जो कह रहा हुं,
          विपरीत धारा में बह रहा हुंं
          मानना न मानना तुम्हारा काम है,
          मेरा काम है सिर्फ कहना।।

        ----:भारतका एक ब्राह्मण.
            संजय कुमार मिश्र"अणु"
                   --:अध्यक्ष:--
      साहित्य कला परिषद् अरवल