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संवैधानिक मर्यादा में हिंदू राष्ट्र,वैदिक संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन

संवैधानिक मर्यादा में हिंदू राष्ट्र,वैदिक संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन

आचार्य अनन्त कृष्ण
भारत एक बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश है, जहाँ धर्म, परंपरा और सभ्यता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। संविधान ने भारत को सार्वभौमिक, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया है और सुप्रीम कोर्ट ने इसे मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा बताया है। इसका अर्थ है कि कोई भी सरकार इसे बदल नहीं सकती।

हालांकि, संविधान की मर्यादा के भीतर हिंदू संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण पूरी तरह संभव है। अनुच्छेद 29 और 30 सभी समुदायों की भाषा, संस्कृति और शैक्षणिक संस्थानों के अधिकार की सुरक्षा करते हैं। इसका कानूनी मतलब है कि भारत में हिंदू संस्कृति का संवर्धन संविधान का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि इसे मजबूत करता है।

हिंदू संस्कृति हजारों वर्षों से विकसित हुई है। इसमें वेद, उपनिषद, रामायण, गीता, योग, आयुर्वेद, नृत्य, संगीत और पूजा-पद्धतियाँ शामिल हैं। ये न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारत की सभ्यता और विश्व संस्कृति में योगदान भी हैं।

सरकार पहले से कई पहल कर रही है, जैसे मंदिरों और तीर्थस्थलों का संरक्षण, संस्कृत शिक्षा और भारतीय कलाओं का प्रचार, योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना। इसके अलावा विचार किया जा सकता है कि मंदिरों की आय का उपयोग सीधे हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार, शोध और शिक्षा में किया जाए, ताकि यह कदम सरकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और पारदर्शी हो। इससे मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र बने रहेंगे, बल्कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक अनुसंधान के केंद्र भी बन सकते हैं, जो युवाओं और वैश्विक समुदाय के लिए ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत बने।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ केवल धर्म के आधार पर राज्य को प्रतिबंधित करना नहीं है। इसका मकसद सभी धर्मों और समुदायों के प्रति समान सम्मान सुनिश्चित करना है। इस दृष्टि से हिंदू संस्कृति का संवर्धन संविधान की भावना का उल्लंघन नहीं करता।

संक्षेप में, भारत संविधान की मूल संरचना बनाए रखते हुए, कानूनी और प्रशासनिक उपायों, मंदिरों की आय के समर्पित उपयोग और शोध एवं शिक्षा के माध्यम से हिंदू संस्कृति, परंपरा और धर्म का वैश्विक स्तर पर प्रचार कर सकता है। *यह मॉडल न केवल राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाता है, बल्कि भारत को विश्व स्तर पर एक सभ्यतापूर्ण और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में स्थापित करता है।

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