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मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता

मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता

कुमार महेंद्र
कोमल निर्मल सरस भाव,
अंतर विमल विमल सरिता ।
त्याग समर्पण प्रतिमूर्ति,
अनंता अत्युत्तम कविता ।
सृजन उत्थान पथ पर,
शोभित समता अनन्य लावण्यता।
मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता ।।


स्नेहगार ,दया उद्गम स्थल,
अप्रतिम श्रृंगार सृष्टि का ।
पूजनीय कमनीय शील युत,
नैतिक अवलंब दृष्टि का ।
उमा रमा शारदा सरिस,
उत्संग विश्रांत आनंद भव्यता ।
मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता ।।


अद्भुत तेज पुंज उज्ज्वल,
जग ज्योति अखंडित ।
हर युग अति गुणगान,
गरिमा महिमा शीर्ष मंडित ।
ऊर्जस्वित कर प्राण सकल ,
बुलंद उत्साह उड़ान नव्यता ।।
मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता ।।


संस्कृति संस्कार धर्म रक्षक,
परंपरा मर्यादा युक्त चरित्र ।
नैतिक सात्विक पथ गामिनी ,
व्यक्तित्व कृतित्व पवित्र ।
अग्रसर हर क्षेत्र प्रगति पथ,
शिखर स्पर्श संग तन्मयता ।
मुक्तिकामी स्त्री,संस्कृति की सुरम्यता ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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