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दिसंबर: स्मृतियों का कोलाज और इतिहास का शाश्वत झरोखा

दिसंबर: स्मृतियों का कोलाज और इतिहास का शाश्वत झरोखा

सत्येन्द्र कुमार पाठक
दिसंबर केवल कैलेंडर का अंतिम पन्ना नहीं है, बल्कि यह स्मृतियों, संघर्षों, वैज्ञानिक बदलावों और उत्सवों का एक ऐसा अनूठा संगम है, जो हमें अतीत की जड़ों से जोड़कर भविष्य की ओर ले जाता है। जब हम दिसंबर की गुनगुनी धूप का आनंद लेते हैं, तब शायद ही हम यह सोचते हैं कि जिस महीने को हम '12वां' कह रहे हैं, उसका नाम चीख-चीखकर खुद को 'दसवां' बता रहा है। यह अंत भी है और शुरुआत भी; यह शोक भी है और उत्सव भी। आइए, इतिहास की परतों को उलटते हुए दिसंबर के इस रोमांचक सफर को समझते हैं। दिसंबर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द देसम ' से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'दस'। आज यह सुनकर अजीब लग सकता है, लेकिन प्राचीन रोमन काल में यह वास्तव में साल का दसवां महीना ही था। रोमुलस का 10 महीनों वाला कैलेंडर: रोम के संस्थापक और पहले राजा रोमुलस द्वारा लगभग 750 ईसा पूर्व में बनाए गए पहले कैलेंडर में केवल 10 महीने होते थे। साल की शुरुआत 'मार्च' (Martius) से होती थी, जो युद्ध के देवता मार्स को समर्पित था। उस समय का कैलेंडर केवल 304 दिनों का होता था। शेष 61 दिन, जो कड़ाके की ठंड के होते थे, उन्हें किसी महीने का दर्जा नहीं दिया गया था क्योंकि उस दौरान न तो युद्ध होते थे और न ही खेती। बाद में जब कैलेंडर में सुधार हुआ और जनवरी व फरवरी को जोड़ा गया, तो दिसंबर खिसककर 12वें स्थान पर आ गया, लेकिन इसका नाम 'दसवां' ही बना रहा। यह भाषाई विरोधाभास आज भी हमें उस प्राचीन काल की याद दिलाता है। दिसंबर और रोमन कैलेंडर की चर्चा रोमुलस के बिना अधूरी है। उनकी कहानी इतिहास और किंवदंती का एक अद्भुत मिश्रण है, जो किसी रोमांचक फिल्म से कम नहीं लगती।
नदी में त्याग और भेड़िये का साथ: पौराणिक कथाओं के अनुसार, रोमुलस और उनके भाई रेमुस युद्ध के देवता मार्स और रिया सिल्विया के पुत्र थे। उनके जन्म के समय, उनके नाना नुमिटोर को उनके भाई अमुलियस ने गद्दी से हटा दिया था। अमुलियस ने बच्चों को एक टोकरी में रखकर तिबर नदी में बहा देने का आदेश दिया। नियति को कुछ और ही मंजूर था; नदी का बहाव उन्हें किनारे ले आया जहाँ एक मादा भेड़िये (Lupa) ने उन्हें अपना दूध पिलाकर बचाया।
रोम की स्थापना और भाई की हत्या: बड़े होकर, दोनों भाइयों ने अपने दादा को गद्दी वापस दिलाई और उस स्थान पर शहर बसाने का निर्णय लिया जहाँ भेड़िये ने उन्हें बचाया था। हालांकि, शहर की सीमाओं को लेकर हुए विवाद में रोमुलस ने अपने भाई रेमुस की हत्या कर दी। 21 अप्रैल, 753 ईसा पूर्व को उन्होंने 'रोम' की नींव रखी। रोमुलस ने ही पहली राजनीतिक संस्थाओं और सैन्य ढांचे का निर्माण किया। उनके शासनकाल का अंत भी रहस्यमयी था; माना जाता है कि वे एक तूफान के दौरान गायब हो गए और उन्हें देवता 'क्विरिनस' के रूप में पूजा जाने लगा। भारत के लिए दिसंबर का महीना बदलाव और बलिदान की कहानियों से भरा रहा है। भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम की कई बड़ी घटनाओं ने इसी महीने में आकार लिया:
1911 (राजधानी का स्थानांतरण): 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने की घोषणा की। इसने आधुनिक दिल्ली के निर्माण की नींव रखी।
1927 (क्रांतिकारियों का सर्वोच्च बलिदान): 17 से 19 दिसंबर के बीच भारत के महान सपूतों—राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह को फाँसी दी गई। उनके बलिदान ने भारतीय युवाओं में आजादी की अलख को और प्रचंड कर दिया। 1984 (भोपाल गैस त्रासदी): 2 और 3 दिसंबर की वह काली रात, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली 'मिथाइल आइसोसाइनेट' गैस ने हजारों जिंदगियाँ निगल लीं। यह दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना मानी जाती है। 2001 (संसद पर हमला): 13 दिसंबर को जब आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया, तो हमारे जांबाज सुरक्षा बलों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश के गौरव की रक्षा की। 2004 (सुनामी का कहर): 26 दिसंबर को हिंद महासागर में आई विनाशकारी सुनामी ने दक्षिण भारत सहित कई देशों में भारी तबाही मचाई, जो प्रकृति के विकराल रूप की याद दिलाती है। वैश्विक स्तर पर भी दिसंबर ने दुनिया का नक्शा और मानवीय सोच को नई दिशा दी है: बोस्टन टी पार्टी (1773): 16 दिसंबर को हुई इस घटना ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी सुलगाई, जिसने अंततः एक नए राष्ट्र को जन्म दिया। क्रिसमस ट्रूस (1914): प्रथम विश्व युद्ध की विभीषिका के बीच एक ऐसा क्षण आया जब सैनिकों ने स्वतः स्फूर्त तरीके से युद्ध रोक दिया। 'नो मैन्स लैंड' पर सैनिकों ने साथ मिलकर फुटबॉल खेला और शांति का संदेश दिया। यह इतिहास की सबसे मानवीय घटनाओं में से एक है।।अंटार्कटिका संधि (1959): 1 दिसंबर को दुनिया के देशों ने इस बर्फानी महाद्वीप को केवल विज्ञान और शांति के लिए सुरक्षित रखने का ऐतिहासिक संकल्प लिया। जॉन लेनन की हत्या (1980): 8 दिसंबर को संगीत की दुनिया के दिग्गज और शांति के पैरोकार जॉन लेनन की हत्या ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। दिसंबर केवल गंभीर घटनाओं का ही नहीं, बल्कि उल्लास और सामाजिक चेतना का भी महीना है।।1 दिसंबर: विश्व एड्स दिवस (स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता)। 4 दिसंबर: भारतीय नौसेना दिवस (शक्ति का प्रदर्शन)। 24 दिसंबर: राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस है।
प्राचीन रोम में इस समय 'सैटर्नालिया' उत्सव मनाया जाता था, जो कृषि के देवता सैटर्न को समर्पित था। इस दौरान उपहार बांटे जाते थे और दावतें होती थीं। इसी तरह, 25 दिसंबर को 'सोल इन्विक्टस' (अपराजित सूर्य) का जन्मदिन मनाया जाता था। बाद में, ईसाई धर्म के प्रसार के साथ, इसी समय को ईसा मसीह के जन्म (क्रिसमस) के रूप में अपनाया गया। शीतकालीन संक्रांति के साथ शुरू होने वाला यह समय हमें सिखाता है कि सबसे लंबी रात के बाद उजाला अवश्य मिलता है। दिसंबर हमें सिखाता है कि समय का पहिया निरंतर घूमता रहता है। जहां यह महीना साल के अंत का प्रतीक है, वहीं यह आने वाले नए संकल्पों की दहलीज भी है। रोमुलस के 10 महीनों वाले कैलेंडर से लेकर आज के डिजिटल युग तक, दिसंबर ने मानव सभ्यता के उत्थान और पतन, दोनों को देखा है। यह महीना हमें याद दिलाता है कि भले ही बाहर कड़ाके की ठंड हो, लेकिन इतिहास की गर्म यादें, बलिदानों की गाथाएं और उत्सवों की रोशनी हमारे भीतर की ऊर्जा को हमेशा बनाए रखती हैं। यह अतीत की गलतियों से सीखने और भविष्य के लिए नई उम्मीदें संजोने का एक सुनहरा अवसर है।
31 दिसंबर का दिन कैलेंडर की अंतिम तिथि मात्र नहीं है, बल्कि यह वह संधिकाल है जहाँ बीतते हुए वर्ष का अनुभव और आने वाले कल की आशाएं एक-दूसरे का हाथ थामती हैं। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह दिन इतिहास की महान घटनाओं, धार्मिक आस्थाओं और अनूठी लोक-परंपराओं का एक अद्भुत गुलदस्ता है। इतिहास के पन्नों पर 31 दिसंबर की तारीख अमिट स्याही से लिखी गई है। साल 1600 में इसी दिन ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' को शाही फरमान जारी कर व्यापारिक एकाधिकार दिया था। किसी ने नहीं सोचा था कि एक व्यापारिक कंपनी एक दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) के भाग्य का फैसला करेगी। लेकिन समय का चक्र घूमता है, और इसी तारीख ने भारत को प्रतिरोध की शक्ति भी दी। 31 दिसंबर 1929 की बर्फीली आधी रात को लाहौर में रावी नदी के तट पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा फहराया और 'पूर्ण स्वराज' की घोषणा की। उस रात इंकलाब के नारों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी। यह दिन हमें याद दिलाता है कि गुलामी की बेड़ियाँ कितनी भी मजबूत क्यों न हों, दृढ़ संकल्प उन्हें काट सकता है। यूरोप और विशेषकर इटली के लिए 31 दिसंबर 'सेंट सिल्वेस्टर' का पर्व है। पोप सिल्वेस्टर प्रथम (314–335 ईस्वी) की याद में मनाए जाने वाले इस दिन को 'ला फेस्टा डी सैन सिल्वेस्ट्रो' कहा जाता है। रोम की गलियों में उनके चमत्कारों की कहानियां आज भी गूंजती हैं।कहा जाता है कि पोप सिल्वेस्टर ने अपनी प्रार्थना से रोम को एक जहरीले ड्रैगन के आतंक से मुक्त कराया था। यह कहानी असल में अंधकार पर प्रकाश की और मूर्तिपूजा पर आध्यात्मिकता की विजय का प्रतीक है। आज भी जर्मनी, पोलैंड और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में लोग 'हैप्पी न्यू ईयर' के बजाय 'हैप्पी सिल्वेस्टर' कहकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं। आध्यात्मिक रूप से यह दिन 'कृतज्ञता' (Gratitude) का दिन है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में 31 दिसंबर को पुत्रदा एकादशी का पावन संयोग है। भक्त भगवान विष्णु की उपासना करते हैं, ताकि नया साल संतान सुख और समृद्धि लेकर आए। वहीं, अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की वर्षगांठ के रूप में भी अब यह दिन भारत के सांस्कृतिक गौरव का हिस्सा बन चुका है। वेटिकन सिटी के 'सेंट पीटर्स बेसिलिका' में पोप द्वारा 'ते ड्यूम' (Te Deum) का पाठ किया जाता है। यह एक प्राचीन स्तुति गान है, जिसमें ईश्वर को बीते हुए 365 दिनों के संरक्षण के लिए धन्यवाद दिया जाता है। यह संदेश देता है कि भविष्य की योजना बनाने से पहले अतीत के आशीर्वादों को स्वीकार करना अनिवार्य है।
31 दिसंबर की रात को लेकर दुनिया भर में कई रुचिपूर्ण मान्यताएं हैं । रोम में लोग रात 12 बजे मसूर की दाल (लेंतिक्खी) खाते हैं, क्योंकि इसके दाने सिक्कों जैसे दिखते हैं। मान्यता है कि इससे साल भर धन की वर्षा होती है। इटली में लाल रंग पहनना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। खिड़की से विदाई: पुरानी इतालवी परंपरा में लोग अपनी खिड़कियों से पुरानी प्लेटें और बर्तन फेंकते थे, जो पुराने साल के दुखों को घर से बाहर निकालने का प्रतीक था ।
31 दिसंबर हमें सिखाता है कि समय का अंत ही नई शुरुआत का बीज है। चाहे वह नेहरू का स्वराज संकल्प हो, पोप सिल्वेस्टर का साहस हो, या एक आम आदमी द्वारा ईश्वर को दिया गया धन्यवाद—यह दिन आत्म-चिंतन का है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम अपने इतिहास से सीखें, वर्तमान का आभार मानें और एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं।
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