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विनोबा भावे का संकल्प " जय जगत "

विनोबा भावे का संकल्प " जय जगत "

महात्मा बुद्ध की पावन धरा बोधगया बिहार के बोधि ट्री स्कूल श्रीपुर में अंतरराष्ट्रीय आचार्य कुल - 2025 का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शानदार सफल आयोजन किया गया । प्रथम दिवस उद्धाटन सत्र में भारतीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता पोदार मुख्य अतिथि रही । विनोबा भावे के आध्यात्मिक चिंतक हेम भाई असम , विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग, झारखंड के कुलपति, डॉ. एस.पी. शाही, मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य , डॉ. श्यामा प्रसाद पूर्व कुलपति मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची ,डॉ. रामजी यादव, कुलाधिपति, वाई.बी.एन. विश्वविद्यालय रांची ,डॉ. एस.पी. अग्रवाल, कुलपति, साईनाथ विश्वविद्यालय, रांची , डॉ. चंद्रभूषण शर्मा, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग , सरस्वती विद्या मंदिर, धनबाद के संस्थापक प्राचार्य डॉ. वासुदेव प्रसाद , थावे विद्यापीठ के प्रति कुलपति और रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ . जंग बहादुर पांडेय , आचार्य कुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता, सुप्रसिद्ध पत्रकार और साहित्यकार सत्येंद्र कुमार पाठक , कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ आचार्य कुल की राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषा किरण श्रीवास्तव हरियाणा के साहित्यकार एवं आशु कवि डॉ त्रिलोक चंद फतेहपुरी अटेली हरियाणा विशिष्ट अतिथि रहे । समारोह की अध्यक्षता आरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं आचार्य कुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य धर्मेन्द्र ने की ।
आचार्यकुल का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन 16 दिसंबर से 18 दिसम्बर, 2025 को बोधगया बिहार के बोधि ट्री स्कूल श्रीपुर के हरे भरे प्रांगण में सम्पन्न हुआ । इस सम्मेलन का उद्देश्य महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण (जेपी) की रचनात्मक विचारधाराओं को अंगीकार करने वाले चिंतकों को एक मंच पर लाना रहा। इस महत्वपूर्ण आयोजन में देश के 12 राज्यों एवं अमेरिका , इंग्लैंड , वाशिंगटन, सिंगापुर , जर्मनी आदि देशों के आचार्यकुल के सदस्य, भूदान यज्ञ के प्रतिनिधि, साहित्यकार, कवि, पत्रकार और समाजसेवी शामिल हुए। संत विनोबा भावे जी की मानस पुत्री और आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी, सुश्री प्रवीणा देसाई बीमार होने के कारण अनुपस्थिति रही, परन्तु उनके संदेश को पढकर सुनाया गया। विश्वभर के निर्भिक, निष्पक्ष, अहिंसक, असांप्रदायिक, अराजनैतिक चिन्तकों के विचारों पर मंथन हुआ।यह अधिवेशन वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के बीच गांधीवादी और रचनात्मक सोच की प्रासंगिकता को स्थापित करने का एक प्रयास है। आचार्यकुल के अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का मुख्य एजेंडा कई दूरगामी और ऐतिहासिक महत्व के विषयों पर विचार-विमर्श करना है। विचारणीय विषयों में शामिल हैं - 2027 में आचार्य कुल के 60 वीं वर्षगांठ की भव्य तैयारी की रूपरेखा। स्थापना वर्ष 2026, 2027 एवं 2028 हेतु आचार्यकुल के प्रमुख कार्यक्रम ‘जय जगत’ की गतिविधियों पर मंथन। भूदान यज्ञ आन्दोलन के 75वें वर्ष (2026) के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रमों के आयोजन पर विचार-विमर्श करना। चरखा संघ के स्थापना वर्ष पर भी महत्वपूर्ण चर्चा। ग्राम सभा सहयोग अभियान को सशक्त बनाने की रणनीति। विभिन्न संगठनात्मक कोषांगों के कार्यों की समीक्षा और सदस्यता अभियान का विस्तार करना। साहित्य, कला, संस्कृति, पत्रकारिता प्रकोष्ठ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सशक्त बनाने, गठन और विस्तार पर गहन विचार करना।
आचार्य कुल के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसके संयोजक रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच के डाॅ शिव नाथ सिंह तथा संचालक श्रीपाल शर्मा रहे । देश विदेश से पधारे सैंकड़ों कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया तथा भरपूर मनोरंजन भी किया । इस अवसर पर मधु गोयल ( लन्दन) एश्वर्य आर्य और कुशवाहा ( यूके), प्रशांति दीदी और गोविन्द ( वाशिंगटन) माँ ममता देवी, हेम भाई ( असम), अनुज, हृदयानन्द आदि ने अपने विचारों की अभिव्यक्त किये । हरियाणा से पधारे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ त्रिलोक चंद फतेहपुरी ने आचार्य कुल की परंपरा के अंतर्गत विभिन्न सत्रों में पांच विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए ।
१) आध्यात्मिकता एवं व्यक्तिगत विकास
२)सामाजिक न्याय और समानता
३)शिक्षा और नवाचार
४)पर्यावरण और सतत् विकास
५)भारतीय दर्शन और आधुनिक चुनौतियां
इसी प्रकार अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
डाॅ शशिभूषण शर्मा ने कहा कि गांधी – विनोबा के विचार – मंथन ही समाजिक समरसता का द्योतक हैं। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन और गांधी जी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने देश ही नहीं बल्कि विदेश को नयी दिशा प्रदान की । ज्ञान और मोक्ष की पवित्र भूमि बोधगया एक महत्वपूर्ण वैचारिक मंथन का केंद्र बनने जा रहा है।यह उद्बोधन आचार्य डॉ धर्मेन्द्र ने किया।
अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 में जाने- माने पत्रकार और इतिहासकार,आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ठ आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा चयनित मुजफरपुर के कलाकारों के माध्यम से वंदे मातरम एवं जय जगत की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय चेतना एवं जय जगत पर कला संस्कृति पर चर्चा हुई ।बोधगया की पावन धरती, जहाँ ढाई हज़ार वर्ष पूर्व ज्ञान का आलोक प्रस्फुटित हुआ था, वहीं अब भारत के महान दार्शनिक आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित आचार्यकुल अपने अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेशन के माध्यम से ज्ञान, अध्यात्म और मानवतावादी शिक्षा के नए अध्याय लिखने जा रहा है।
आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रख्यात शिक्षाविद् आचार्य डॉ. धर्मेंद्र ने इस महाधिवेशन की विस्तृत रूपरेखा जारी करते हुए इसे 'वर्तमान चुनौतियों के बीच महात्मा गांधी और विनोबा भावे के दर्शन का पुनर्जागरण' बताया है। 150 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति इस आयोजन की महत्ता को सिद्ध करती है, जो बिहार और आचार्यकुल के आध्यात्मिक-शैक्षणिक मूल्यों को वैश्विक मंच प्रदान करेगा।
विनोबा के दर्शन की गूँज: भूदान से पत्रकारिता तक - आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पत्रकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि यह सम्मेलन केवल एक अकादमिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भूदान यज्ञ और सर्वोदय की उस महान परंपरा का समागम है, जिसने भारत के सामाजिक ताने-बाने को नई दिशा दी। सत्येंद्र कुमार पाठक ने उद्घोष किया, "यह बोधगया में हो रहा समागम उस अमृत मंथन जैसा है, जहाँ शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति और पत्रकारिता के पुरोधा एक मंच पर आकर मानवता के उत्थान पर विचार करेंगे। देश-विदेश के प्रतिनिधि भारत की ज्ञान परंपरा और अध्यात्म को विश्व के समक्ष पुनर्स्थापित करने का संकल्प लेंगे।"
जयपुर से पधारे आचार्य सतीश शांडिल्य ने भी भूदान आंदोलन के अग्रदूत विनोबा भावे के आध्यात्मिक सिद्धांतों और दर्शन के साथ - साथ आज की पत्रकारिता विषय पर विचार व्यक्त किए ।
संकल्प का सूत्रपात (उद्घाटन दिवस 16 दिसंबर) - पंजीयन के उपरांत अंतरंग विमर्श एवं आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा बिहार से डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव , प्रो. डॉ पुष्पा गुप्ता , जी एन भट्ट , शम्भू प्रसाद सिंह सीतामढ़ी , डॉ मिंटू शर्मा, अशोक कुमार , संजुदेवी , शैलेन्द्र कुमार सिंह , नीता सहाय , शुभांगी सुमन ,कोमल कुमारी ,आशा रघुदेव ,अनंता कुमारी ,राम कृष्ण पोद्दार ,राहुल कुमार , हरियाणा से त्रिलोकचंद फतेहपुरी , संतोष देवी आदि 33 सदस्य आजीवन एवं वार्षिक सदस्य बने । , आचार्यकुल का सदस्य समारोह में आयोजित होने वाले उद्घाटन सत्र में भावी कार्यक्रमों की आधारशिला रखी गयी । शाम को 18:00 से 21:00 बजे तक होने वाली काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय कला और साहित्य की समृद्ध विरासत का प्रदर्शन होगा। अंतरराष्ट्रीय आचार्य कुल सम्मेलन में आचार्यकुल के राष्ट्रीय महासचिव धर्मेंद्र सिंह राजपूत , उपाध्यक्ष ओमप्रकाश द्विवेदी ,जेपी सिंह , प्रसन्न कुमार बम्ब सचिव , प्रेमचंद गुप्ता सचिव एवं कला संस्कृति प्रकोष्ट के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव प्रमुख भूमिका रही । सम्मेलन उद्घाटन के पश्चात कला संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तब द्वारा स्वंर्णिम कला केंद्र मुजफ्फरपुर बिहार के कलाकारों ने जय जगत एवं वंदे मातरम की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय एवं विश्व बंधुत्व के प्रति जागरूकता का संदेश दी ।
17 दिसंबर: स्वस्थ समाज की मीमांसा (तकनीकी सत्र) - यह दिन वैचारिक गहराई को समर्पित है। सुबह के विशेष तकनीकी सत्रों का केंद्रीय बिंदु है: 'स्वस्थ समाज रचना एवं पत्रकारिता': जिसमें मीडिया की भूमिका पर विचार किया जाएगा। 'स्वस्थ समाज एवं साहित्यकार': जिसमें साहित्य के माध्यम से सांस्कृतिक उत्थान पर चर्चा हुई । शाम का सत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ 'आचार्यकुल स्थापना के 60 वर्ष' की यात्रा का सिंहावलोकन किया जाएगा और आगामी 27-28 वर्षीय कार्यक्रमों की दीर्घकालिक योजना पर मंथन हुई । सम्मेलन में 200 पत्रकारों , साहित्यकारों , भुदानयज्ञ एवं आचार्यकुल सेवियों को आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आचार्य धर्मेंद्र द्वारा सम्मान पत्र , स्मृति चिह्न केवम अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया । सम्मेलन में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ट का राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव , निर्माण भारती ( हिंदी पाक्षिक के संपादक जी एन भट्ट , हरियाणा के साहित्यकार व कवि ड़ॉ त्रिलोक चंद फतेहपुरी , संपादक पत्रकार , प्रभात वर्मा आदि पत्रकारों , साहित्यकारों को अंग वस्त्र , स्मृति चिह्न केवम सम्मान पत्र आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ आचार्य धर्मेंद्र व राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य ममता पोद्दार द्वारा सम्मानित किया गया ।
अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ठ आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा चयनित मुजफ्फरपुर के कलाकारों के माध्यम से बंदे मातरम एवं जय जगत की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय चेतना एवं जय जगत पर कला प्रदर्शन किया गया ।
18 दिसंबर को साहित्य, कला और पत्रकारिता की विभूतियों का हुआ समागम विश्व शांति और महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में 'अंतरराष्ट्रीय आचार्य कुल सम्मेलन - विश्व समन्वय कुम्भ 2025' का ऐतिहासिक आयोजन अत्यंत भव्यता के साथ संपन्न हुआ।
सम्मेलन में वक्ताओं ने भूदान आंदोलन की वर्तमान प्रासंगिकता और समाज में पत्रकारों एवं साहित्यकारों की बदलती जिम्मेदारी पर भी गहन प्रकाश डाला। अधिवेशन के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें कलाकारों ने शांति और सौहार्द के संदेशों को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया। हरियाणा से आए डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी की कविताओं और अन्य साहित्यकारों की चर्चाओं ने इस कुम्भ को बौद्धिक रूप से समृद्ध किया। समारोह के समापन पर उपस्थित प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संकल्प लिया। बोधिट्री स्कूल परिसर 'जय जगत' और 'अहिंसा परमो धर्मः' के नारों से गुंजायमान रहा। इस अंतरराष्ट्रीय समागम ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और नैतिक छवि को वैश्विक पटल पर मजबूती से प्रस्तुत किया।
समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने कहा, "आचार्यकुल केवल एक संगठन नहीं, बल्कि संत विनोबा भावे का वह सपना है जो राजनीति से ऊपर उठकर समाज को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलाने का आह्वान करता है। आज के इस 'विश्व समन्वय कुम्भ' का उद्देश्य ही यही है कि हम साहित्य, कला और सेवा के माध्यम से विश्व में समन्वय स्थापित करें।" उन्होंने आगे कहा कि शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय, आरा जैसे संस्थानों का सहयोग यह दर्शाता है कि शिक्षा और संस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सम्मेलन में वक्ताओं ने भूदान आंदोलन की वर्तमान प्रासंगिकता और समाज में पत्रकारों एवं साहित्यकारों की बदलती जिम्मेदारी पर भी गहन प्रकाश डाला। अधिवेशन के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें कलाकारों ने शांति और सौहार्द के संदेशों को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया।
उपस्थित प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संकल्प लिया। बोधि ट्री स्कूल परिसर 'जय जगत' और 'अहिंसा परमो धर्मः' के नारों से गुंजायमान रहा। इस अंतरराष्ट्रीय समागम ने पूरे भारत की सांस्कृतिक और नैतिक छवि को वैश्विक पटल पर मजबूती से प्रस्तुत किया ।
- डॉ. त्रिलोक चंद फतेहपुरी अटेली महेंद्रगढ़, हरियाणा
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