महाकाल शिव का विराट स्वरूप: प्रतीकों में निहित सृष्टि
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय पौराणिक और दार्शनिक परंपरा में, भगवान शिव को 'महादेव' या 'महाकाल' के रूप में पूजा जाता है। उनका स्वरूप, उनके वस्त्र, उनके आभूषण और उनके अस्त्र-शस्त्र—ये सब मिलकर केवल एक देवता की छवि नहीं बनाते, बल्कि सृष्टि के मूलभूत सिद्धांतों, समय चक्र, और मानव चेतना के उच्चतम आदर्शों का प्रतीक हैं। शिव का प्रत्येक तत्व गहन दार्शनिक अर्थ रखता है, जो उन्हें परम योगी, भयंकर विनाशक और करुणामय रक्षक के रूप में स्थापित करता है। भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान अर्धचंद्रमा (सोम) उनके सबसे प्रसिद्ध स्वरूप 'चंद्रशेखर' का आधार है। यह कहानी दक्ष प्रजापति के श्राप और शिव के करुणामय हस्तक्षेप से जुड़ी है। जब राजा प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों (नक्षत्रों) के साथ भेदभाव करने के कारण चंद्रदेव को क्षय (घटने) का श्राप दिया, तो चंद्रमा मृत्युतुल्य हो गए।
शिव का आश्रय: चंद्रमा ने सहायता के लिए शिव की शरण ली। शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में स्थान दिया और शीतलता प्रदान कर श्राप के प्रकोप को शांत किया। शिव का यह कार्य उनकी रक्षक और दयालु भूमिका को दर्शाता है।
संतुलन का प्रतीक: चंद्रमा (सोम) शीतलता, मन और अमृत का प्रतीक है, जबकि शिव (शंकर) उग्रता और वैराग्य का। दोनों का समन्वय यह दर्शाता है कि सृष्टि को चलाने के लिए उग्रता (तेज) और शीतलता (शांति) के बीच संतुलन आवश्यक है। शिव अपने भीतर सभी द्वंद्वों को समाहित कर संतुलन स्थापित करते हैं।इसी घटना के उपरांत चंद्रदेव ने प्रभास क्षेत्र में जिस शिवलिंग की स्थापना की, वह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो शिव और सोम के अटूट बंधन का प्रमाण है। शिव के हाथ में स्थित दो प्रमुख प्रतीक उनकी शक्ति और नियंत्रण को दर्शाते हैं। डमरू की ध्वनि को 'नाद' या 'ओम्' माना जाता है, जो सृष्टि की प्रारंभिक कंपन है। उत्पत्ति का नाद: प्रतीक है कि शिव की ध्वनि (कंपन) से ही संपूर्ण ब्रह्मांड और समय का जन्म हुआ है। महेश्वर सूत्र: कहा जाता है कि शिव के तांडव नृत्य के दौरान डमरू की 14 बार की ध्वनि से संस्कृत व्याकरण के मूल महेश्वर सूत्र की उत्पत्ति हुई, जो भाषा और ज्ञान का आधार बने।
त्रिशूल के तीन शूल शिव के नियंत्रण को दर्शाते हैं। त्रिगुणों पर नियंत्रण:सत्व, रजस और तमस (प्रकृति के तीन गुण) पर शिव की प्रभुता को दर्शाता है। शिव इन गुणों से परे हैं, फिर भी ये गुण उनके अधीन रहकर कार्य करते हैं।
इच्छा, ज्ञान, क्रिया: यह इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति के समन्वय को भी दर्शाता है। शिव इन तीनों शक्तियों का उपयोग करके सृष्टि का संचालन करते हैं शिव का स्वरूप किसी राजा या भोगी का नहीं है, बल्कि एक महायोगी का है, जिसके प्रतीक वैराग्य और काल पर विजय की गाथा कहते हैं। शिव के गले में लिपटा सर्प वासुकी नाग कई रहस्यों को समेटे है। सर्प काल (समय) का प्रतीक है। शिव द्वारा इसे आभूषण के रूप में धारण करना यह दर्शाता है कि वे मृत्यु और काल पर विजयी हैं, इसीलिए वे महाकाल कहलाते हैं। कुंडलिनी शक्ति: आध्यात्मिक ऊर्जा कुंडलिनी का भी प्रतीक है, जिसे शिव ने जागृत कर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। शिव पूरे शरीर पर चिता की राख (भस्म) रमाते हैं । भस्म इस भौतिक संसार की नश्वरता (सब कुछ अंततः राख हो जाएगा) का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह भक्तों को वैराग्य का मार्ग और भौतिक मोह से मुक्ति का संदेश देता है।: भस्म अग्नि में जलने के बाद बची हुई शुद्धतम अवस्था है। यह शुद्धता और सभी पापों के विनाश का प्रतीक है। शिव की जटाएँ गहन तपस्या और आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाती हैं। : जटाओं में गंगा का निवास शिव की करुणा और संरक्षक की भूमिका को दर्शाता है, जहाँ उन्होंने गंगा के वेग को रोककर पृथ्वी को विनाश से बचाया और पवित्रता (मोक्ष की धारा) को नियंत्रित किया।
. तृतीय नेत्र और कैलाश: ज्ञान : मस्तक पर स्थित नेत्र शिव की आंतरिक शक्ति का केंद्र है। विवेक दृष्टि:दो सामान्य आँखों से परे ज्ञान (अंतर्दृष्टि) और विवेक की दृष्टि का प्रतीक है, जो सत्य और असत्य में भेद करती है। अज्ञान का विनाश नेत्र अज्ञान, काम वासना ( कामदेव को भस्म करना) और अहंकार के विनाश की शक्ति रखता है। यह चेतना की जागृति (आज्ञा चक्र) का प्रतीक है। कैलाश, शिव का निवास, केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र है। स्थिरता और वैराग्य स्थिरता, अविनाशीपन और भौतिक सुखों से दूर तपस्वी जीवन का प्रतीक है। कैलाश को ब्रह्मांड का अक्ष माना जाता है, जो दर्शाता है कि शिव स्वयं ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित हैं, जो संपूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करते हैं। नंदी बैल, शिव का वाहन और द्वारपाल, शिव की ओर मुख करके बैठे रहते हैं। नंदी धर्म और सत्य का प्रतीक है। नंदी को शिव तक पहुँचने का माध्यम माना जाता है, जिसका अर्थ है कि धर्म के मार्ग पर चलकर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है। नंदी का स्थिर आसन एकाग्रता, धैर्य और अटूट भक्ति का संदेश देता है। यह सिखाता है कि शिव को प्राप्त करने के लिए मन की एकाग्रता आवश्यक है। भगवान शिव का स्वरूप अंतिम वास्तविकता को दर्शाता है। वे केवल पौराणिक पात्र नहीं हैं, बल्कि वे अनादि, अनंत, और अव्यक्त शक्ति हैं। उनके प्रतीक हमें याद दिलाते हैं कि जीवन नश्वरता (भस्म) से भरा है, फिर भी हमें धैर्य (नंदी) के साथ ज्ञान (तृतीय नेत्र) प्राप्त करना चाहिए, काल (सर्प) पर विजय पानी चाहिए, और जीवन के सभी द्वंद्वों को संतुलन (चंद्रमा) में जीना चाहिए। शिव का विराट स्वरूप हमें बताता है कि मोक्ष बाहर नहीं, बल्कि स्वयं के भीतर स्थित चेतना के उत्थान में निहित है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com