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निकम्मा

निकम्मा

हर हेंगा में जेही सेही,
पगुरी में रंथ।
खाये खातिर जनम लेले,
कुछ निकम्मा वंश।।
पढ़े में बुखार लागे,
काम धंधा में तेरह बाइस।
खटिया पर से उठते उनका,
पेट भरे के होखे ख्वाइश।।
अइसन औलादन के चलते,
घर के इज्जत जाला।
पहिले घर के गहना गुरिया,
फिर खेत बारी बिकाला।।
ईश्वर चहिहें तबे निकम्मा,
जनम ना लेवे कोई।
घर परिवार सुरक्षित रहिहें,
भला भी जग के होई।।

जय प्रकाश कुवंर
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