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ओ मन थोड़ी धीर धरो......

ओ मन थोड़ी धीर धरो......

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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सजते पलों का अभिनंदन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो
आँचल में मधुरिम स्पंदन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो......
फूलों से महके प्रांगण में
आया है मधुमास
फूलों से महके प्रांगण में
आया है मधुमास
नयनों की भाषा पढ़ते–पढ़ते
ढल जाए मधुप्रभात
चिर–सपनों का अभिनव दर्पण होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो
आँचल में मधुरिम स्पंदन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो.......
क्यूँ इतना हृदय चलायमान है
इस श्यामल सी रात
क्यूँ इतना हृदय चलायमान है
इस श्यामल सी रात
कह लेना मन की गुप्त कथाएँ
नभ भी देगा साथ
आलिंगन में शीतल कंपन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो
आँचल में मधुरिम स्पंदन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो.....
वह है तेरी सुकुमार प्रिया
और तुम वीर–विनीत
वह है तेरी सुकुमार प्रिया
और तुम वीर–विनीत
धर लो भावों की सुनहरी क्षणिका
रख हृदय अडिग, अतीत
नयनों–नयनों में कविता–कण होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो
आँचल में मधुरिम स्पंदन होगा
ओ मन थोड़ी धीर धरो......
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