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जीवन-रेखा पर्वत: संरक्षण से समृद्धि तक

जीवन-रेखा पर्वत: संरक्षण से समृद्धि तक

सत्येन्द्र कुमार पाठक
अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस प्रत्येक वर्ष 11 दिसंबर को मनाया जाता है, जो हमें पृथ्वी के सबसे ऊंचे और सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों की अपरिहार्यता की याद दिलाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2002 को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित करने के बाद, 2003 से यह दिवस आधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आया। इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक समुदाय का ध्यान पर्वतों के सतत विकास के महत्व पर केंद्रित करना है। पहाड़ केवल भू-आकृतियाँ नहीं हैं; वे जलवायु, जल और जैव विविधता के विशाल भंडार हैं, जो दुनिया की लगभग आधी आबादी को अप्रत्यक्ष रूप से जीवन प्रदान करते हैं। पर्वत हमारे ग्रह की जीवन-रेखा के रूप में कार्य करते हैं, जिन्हें अक्सर "दुनिया के जल-मीनार" कहा जाता है।
ये मीठे पानी का प्राथमिक स्रोत हैं। ग्लेशियर और बर्फबारी से निकलने वाला पानी दुनिया की प्रमुख नदियों को पोषित करता है, जो पीने, कृषि और ऊर्जा उत्पादन के लिए अनिवार्य है।पहाड़ जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं, जहाँ कई स्थानिक (Endemic) प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो कहीं और नहीं मिलतीं। ये वनस्पतियों और जीवों की एक विशाल श्रृंखला के लिए महत्वपूर्ण आश्रय स्थल प्रदान करते हैं।पर्वतीय वन और उच्चभूमि घास के मैदान कार्बन को अवशोषित करते हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, वे स्वयं जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं, जिसका प्रमाण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना है।ये कारक पर्वतों के संरक्षण को केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य और जल सुरक्षा का मुद्दा बनाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 2030 एजेंडे में पर्वतों को एक विशिष्ट स्थान दिया गया है, जो उनके संरक्षण की वैश्विक आवश्यकता को दर्शाता है। यह लक्ष्य सीधे तौर पर पर्वतीय एजेंडे को संबोधित करता है। लक्ष्य 15.4 स्पष्ट रूप से कहता है कि "वर्ष 2030 तक, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्रों, जिनमें उनकी जैव विविधता भी शामिल है, के संरक्षण को सुनिश्चित करना, ताकि सतत विकास के लिए आवश्यक लाभ प्रदान करने की उनकी क्षमता में वृद्धि हो सके।"
अन्य एस डी जी के साथ जुड़ाव: पर्वत, एस डी जी 6 (स्वच्छ जल), एस डी जी 13 (जलवायु कार्यवाही) और एस डी जी 1 (गरीबी का उन्मूलन) को प्राप्त करने के लिए भी निर्णायक हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में गरीबी अक्सर अधिक गहरी होती है, और अस्थिर पर्यावरणीय स्थितियाँ इसे और बढ़ाती हैं। इसलिए, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण इन समुदायों के लिए स्थिरता और लचीलापन सुनिश्चित करने की कुंजी है।
पर्वतीय क्षेत्रों का प्रभावी प्रबंधन और संरक्षण स्थानीय तथा स्वदेशी समुदायों की सक्रिय भागीदारी के बिना असंभव है। ये समुदाय न केवल पहाड़ों के निवासी हैं, बल्कि वे ज्ञान और परंपराओं के भंडार भी हैं ।उनके पास पीढ़ियों से संचित ज्ञान है कि संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग कैसे किया जाए। उनकी पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ (जैसे सीढ़ीदार खेती) और जल प्रबंधन तकनीकें मिट्टी के कटाव को रोकने और जल आपूर्ति को स्थिर करने में अमूल्य हैं। कई पर्वतीय संस्कृतियों में प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान निहित है। उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान अक्सर पवित्र वनों और जल स्रोतों को संरक्षित करने का काम करते हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों (जैसे भूस्खलन, अचानक बाढ़) का सामना करने वाले पहले होने के नाते, स्थानीय समुदाय अक्सर अनौपचारिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके निचले इलाकों को खतरों से आगाह करते हैं।इसलिए, सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के लिए आवश्यक है कि वे नीतियों और परियोजनाओं में इन समुदायों को भागीदार बनाकर उनका सशक्तिकरण करें और उनके ज्ञान को सम्मान देता है।
अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2025 का विषय "पहाड़ी पर्यटन में निवेश" पर्वतीय क्षेत्रों में सतत विकास का एक महत्वपूर्ण आर्थिक मार्ग प्रदान करता है। इकोटूरिज्म की अनिवार्यता: पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन को पर्यावरण-अनुकूल (Ecotourism) होना चाहिए, जिसका अर्थ है पर्यावरण पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव डालना और लाभ को स्थानीय समुदायों तक पहुँचाना। नेपाल में अन्नपूर्णा संरक्षण क्षेत्र इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ ट्रेकिंग परमिट से प्राप्त राजस्व का एक बड़ा हिस्सा सीधे स्थानीय विकास और संरक्षण में पुनर्निवेशित होता है। पेरू में मचांगीन्गा समुदाय द्वारा संचालित स्वदेशी लॉज भी प्रदर्शित करते हैं कि कैसे सामुदायिक स्वामित्व वाला पर्यटन, सांस्कृतिक अखंडता और आर्थिक लाभ को एक साथ साध सकता है। : इकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक स्वामित्व वाले होमस्टे, पर्यावरण-अनुकूल बुनियादी ढांचे, अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 'लीव नो ट्रेस' नीतियों को लागू करना और पर्यटकों को पर्यावरण शिक्षा प्रदान करना महत्वपूर्ण है।
पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र आज कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित खनन, अस्थिर कृषि और शहरीकरण शामिल हैं। इन खतरों से निपटने के लिए एक समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। पर्वतीय-विशिष्ट चिंताओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्माण में एकीकृत करने की आवश्यकता है। दूरस्थ संवेद और भू-स्थानिक तकनीक (Geo-spatial Technology) का उपयोग ग्लेशियरों की निगरानी, प्राकृतिक खतरों के मानचित्रण और भूमि उपयोग पैटर्न को ट्रैक करने के लिए किया जाना चाहिए।: पर्वतीय देशों के बीच ज्ञान, सर्वोत्तम प्रथाओं और साझा जल संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग बढ़ाना समय की माँग है।अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस एक वार्षिक आह्वान है जो हमें पहाड़ों के संरक्षण के प्रति हमारी नैतिक और पारिस्थितिक जिम्मेदारी की याद दिलाता है। पर्वत हमारे जल, हमारी जैव विविधता और हमारी जलवायु के नियामक हैं। पहाड़ों का संरक्षण केवल पर्वतीय समुदायों का कल्याण नहीं है, बल्कि यह हमारे ग्रह के सभी जीवन की निरंतरता सुनिश्चित करने का एक कार्य है। स्थायी पर्यटन में निवेश करना, पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करना और वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप कार्रवाई करना ही हमें जीवन-रेखा पर्वतों की रक्षा करने और उनसे समृद्धि प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।


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