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भगवान बड़े से बड़े अपराध को भी क्षमा करते है...

भगवान बड़े से बड़े अपराध को भी क्षमा करते है...

आनन्द हठीला
एक महात्मा प्रवचन दे रहे थे :- " साधन क्या है ? भगवत कृपा पर विश्वास ... ।। विश्वास करना ही पड़ेगा ।। बिना विश्वास के अगर कृपा हो भी जाएं, तो व्यर्थ है ।। विश्वास करो, इतना ही तुम्हारा पुरुषार्थ है .... ।। "

इतने में ही एक व्यकि आया, और महात्माजी को दंडवत प्रणाम किया ।। दंडवत करने के बाद कहने लगा ... " बाबाजी मेने बहुत पाप किये है, जान बूझकर लोगो का बहुत हृदय दुखाया है , चोरी की है, हिंसा की है, व्यभिचार किया है , झूठ बोलकर लोगो को ठगा है , भला ऐसा कौनसा पाप है जो मेने नही किया ? अब मेरा ह्रदय जल रहा है, मैं ग्लानि में मरा जा रहा हूँ ......,जीवन असह्य हो गया है ।। मृत्यु ही एकमात्र उपाय दिखता है, बाबा मेरी रक्षा करो .... । "

महात्मा ने कहा- "तुम इतना घबराते क्यों हो ? अब तो पाप हो गये है न ? तुम्हारे घबराने से तो उनका होना न होना नहीं हो सकता । शान्त चित्त से विचार करो। अब तो पाप हो गये । उनके लिये पश्चात्ताप कर ही रहे हो । प्रायश्चित्त करो, दण्ड भोगो नरक जाओ। जिस वीरता से पाप किये, उसी वीरता से उनका फल भी भोगो । घबराने की क्या बात है " ।।

उस नवागन्तुक मनुष्य ने कहा- 'महाराज, मेरे चित्त में न शान्ति है न स्थिरता । मेरी वीरता न जाने कहाँ चली गई ? अब तो में धधकती हुई आग में जल रहा हूँ ।"

महात्मा ने कहा - " तुम घबराओ मत भगवान की कृपा पर विश्वास करो । उनका नाम से । उनके प्रति आत्मसमर्पण कर दो। उनमें होते ही तुम्हारे पाप ताप शान्त हो जायेंगे विश्वास करो भगवान् अकारण कृपा पर वह अब भी तुमपर कृपा बरसा ही रहे है, वैसी ही जैसी हमपर या अन्य किसी ओर पर । "

नवागन्तुक बोला - 'प्रभो, में जल रहा हूँ । न मुझमे प्रायश्चित्त करने की शक्ति है और न तो विश्वास करने की । मेरा जीभ से नामोच्चारण भी नहीं होता। में आत्महीन हूँ, तो फिर आत्मसमर्पण कैसे करूँ ? जबतक मेरे पाप है मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूँ।

एक क्षण मौन रहकर महात्मा ने कहा- 'अच्छा तुम एक काम करो । हाथ में गङ्गाजल, कुश और अक्षत लेकर अपने सारे पाप मुझे समर्पित पर दो ! मैं सहर्ष उन्हें स्वीकार करता हूँ । मैं तुम्हारे पाप के फल भोग लूँगा तुम निष्पाप होकर भगवान की शरण मे जाओ, उनकी कृपा पर विश्वास करो ।'

वह मनुष्य आश्चर्यचकित और कुछ आश्वस्त सा होता हुआ बोला - " बाबा, क्या ऐसा भी सम्भव है । मुझ पापी पर भी कोई ऐसे कृपालु हो सकता है जो मेरे पाप का फल भोगने के लिये उन्हें स्वीकार कर ले।

महात्मा ने कहा - 'इसमें क्या सन्देह है ! तुम्हे भगवान की दयालुता पर संदेह है क्या ??

वे हम सबकी माँ हैं । माँ अब अपने बच्चे को गन्दी नाली में गिरा हुआ देखती है, तब उसके, स्नान करने आने की प्रतीक्षा नहीं करती है । वह तो दौड़कर बिना विचारे ही पहले उसे गोद में उठा लेती है, फिर धोती से उसे पोंछती है । गौ का बच्चा जरनाल मे जकड़ा हुआ पैदा होता है, तब माँ उसकी नाल को, उसके गन्दे बन्धन को अपनी जीभ से चाट जाती है, उसके दोष को अपना भोग्य बना लेती है । इसी को वत्सला गौ का वात्सल्य कहते हैं । भगवान का वात्सल्य तो इससे भी अनन्त गुना है । वे पापी को और पापों को भी स्वीकार कर सकते हैं, करते हैं । तुम उनके अपने नन्हें-से शिशु हो, उनकी गोद में हो । तुम विश्वास करो उन्हाने तुम्हें पहले स्वीकार कर लिया है । वे तुम्हारा सिर सूंघ रहे हैं। वे तुम्हें पुचकार रहे हैं । अनुभव करो और आनन्द में मुग्ध हो जानो ।'

उस समय सभी भक्ता और उस नवागंतुक श्रोता की आंखों से आँसू बह रहे थे । सबके शरीर पुलकित थे ,सबके हृदय गदगद हो रहे थे ।

महात्मा ने कहा- 'अब भी तुम्हें शङ्का हो कि मुझ पापी को भगवान् स्वीकार नहीं करेंग तो लाओ सङ्कल्प कर दो, मैं तुम्हारे पाप स्वीकार करता हूँ ।'

नवागन्तुक् ने कहा- 'मेरा विश्वास हो गया, बाबा ! भगवान् मेरी उपेक्षा नहीं करेंगे । उन्होंने मुझे स्वीकार कर लिया, मेरा दृढ विश्वास है । अब मैं कभी उनके चरण दूर नहीं होऊँगा । "

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