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भारतीय चेतना, अमर बलिदान और सुशासन का महापर्व

भारतीय चेतना, अमर बलिदान और सुशासन का महापर्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक
प्रस्तावना इतिहास के महासागर में कुछ तिथियाँ ऐसी ज्वार की तरह आती हैं, जो समय की रेत पर अपने अमिट पदचिह्न छोड़ जाती हैं। 25 दिसंबर एक ऐसी ही तिथि है, जहाँ वैश्विक उत्सव की चमक और भारतीय राष्ट्रवाद की प्रखर ज्वाला एक साथ प्रज्ज्वलित होती है। यह दिन जहाँ प्रभु यीशु के प्रेम और करुणा का है, वहीं यह भारत माता के दो अनमोल रत्नों—पंडित मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी के अवतरण का भी है। साथ ही, यह दिन हमें उन नन्हें साहिबजादों की दीवारों में चिन दी गई शहादत और घर-घर में पूजी जाने वाली तुलसी की पवित्रता की याद दिलाता है।
साहिबजादों का अमर बलिदान: 'वीर बाल दिवस' का वैचारिक धरातल दिसंबर का यह अंतिम सप्ताह भारतीय इतिहास में 'शहीदी सप्ताह' के रूप में जाना जाता है। 25 दिसंबर के परिवेश में जब हम साहिबजादा जोरावर सिंह (7 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह (5 वर्ष) को याद करते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शौर्य की पराकाष्ठा: सरहिंद की वह दीवार, जिसमें इन मासूमों को जीवित चिनवा दिया गया, आज भी गवाह है कि भारतीय संस्कार और धर्म की जड़ें कितनी गहरी हैं। वजीर खान के प्रलोभनों को ठुकराते हुए उन बच्चों ने सिद्ध किया कि 'वीरता' आयु की मोहताज नहीं होती। : प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 'वीर बाल दिवस' (26 दिसंबर) की पूर्व संध्या हमें संकल्प दिलाती है कि हम अपने बच्चों को साहिबजादों जैसी चारित्रिक दृढ़ता और सिद्धांतों के प्रति अडिग रहने का संस्कार दें।
सुशासन के महानायक: अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के वह 'ध्रुवतारा' हैं, जिन्होंने गठबंधन की राजनीति में भी सुशासन के प्रतिमान स्थापित किए। उनके जन्मदिन को भारत 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाता ह उन्होंने 'परमाणु शक्ति' (पोखरण) के जरिए भारत को विश्व पटल पर सुरक्षा की गारंटी दी, तो 'सड़क संपर्क' (स्वर्णिम चतुर्भुज) के जरिए विकास को गांव-गांव तक पहुँचाया। कवि और राजनेता: उनकी पंक्तियाँ— "छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता"—आज भी हर निराश व्यक्ति के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं।
महामना मदन मोहन मालवीय (जन्म 25 दिसंबर 1861) ने भारत को वह 'काशी हिंदू विश्वविद्यालय' (BHU) दिया, जो आज भी संस्कारों और आधुनिक ज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र है। भिक्षुक से विश्वविद्यालय निर्माता: मालवीय जी ने राष्ट्र की उन्नति के लिए झोली फैलाई और राजाओं से लेकर आम जनता तक से सहयोग लिया। उन्होंने सिखाया कि 'सत्यमेव जयते' केवल एक नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति होनी चाहिए। वे 'हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान' की त्रिवेणी के रक्षक थे। . तुलसी पूजन दिवस 25 दिसंबर 2014 से शुरू हुई 'तुलसी पूजन दिवस' की परंपरा ने 25 दिसंबर को एक नई आध्यात्मिक पहचान दी है। यह दिवस पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के बीच अपनी 'स्वदेशी पहचान' को बनाए रखने का आह्वान है।: विज्ञान मानता है कि तुलसी का पौधा 24 घंटे में से 20 घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। यह घर के वास्तु दोष को दूर करने के साथ-साथ हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को भी बढ़ाता है : तुलसी के पौधे की पूजा करना हमें सिखाता है कि हम प्रकृति के 'स्वामी' नहीं, बल्कि 'संरक्षक' हैं।
आध्यात्मिक में प्रभु यीशु (क्रिसमस) प्रेम, करुणा और क्षमा , राजनैतिक में अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और राष्ट्र-प्रथम ,शिक्षा/संस्कारमें महामना मालवीय विद्या, विनय और भारतीयता , वीरता/बलिदान छोटे साहिबजादे धर्म और स्वाभिमान की रक्षा , पर्यावरण के लिए तुलसी पूजन दिवस आरोग्य और प्रकृति वंदन है।
आज जब समाज डिजिटल क्रांति और सूचनाओं के अंबार में खोया हुआ है, 25 दिसंबर की ये महान विभूतियाँ हमें 'धैर्य' और 'विवेक' की सीख देती हैं। हमें समझना होगा कि: क्रिसमस हमें दूसरों के दुख को समझने की प्रेरणा देता है। वीर बाल दिवस हमें आत्मबलिदान के लिए तैयार रहने को कहता है। सुशासन दिवस हमें व्यवस्था के प्रति जवाबदेह बनाता है। तुलसी पूजन हमें अपनी जड़ों और स्वास्थ्य की याद दिलाता है।
एक भव्य संकल्प 25 दिसंबर केवल उत्सवों का मेल नहीं, बल्कि यह 'आत्म-साक्षात्कार' का दिन है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भारत एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें वीरता की गंध (साहिबजादे), ज्ञान की सुगंध (मालवीय), नीति का सौरभ (अटल) और भक्ति की सुगंध (तुलसी) एक साथ समाहित है।, इस पावन तिथि पर हम संकल्प लें कि हम अपने राष्ट्र के इन महान नायकों के पदचिह्नों पर चलेंगे। हम शिक्षित बनेंगे, वीर बनेंगे और अपनी गौरवशाली संस्कृति के संरक्षक बनेंगे ।


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