दिल के विकार
संजय जैनवो मुझसे मिलने तरसते रहे।
पर मैंने मिलना उचित न समझा।
पहले से ही दो दो के साथ था।
फिर तीसरे को कैसे हाँ करता।।
जवानी को तो इश्क में गमा दिया।
बूढ़ापे में क्या मोहब्बत करोगें ।
जमा किया बुढ़ापे से पहले लूटा दिया।
फिर भी ख्व़ाब देखते रहते हो
बुढ़ापे में तनहाइयाँ मिटाने वाली का।।
आम पक चुका है
फिर भी इंतजार कर रहे हो।
अरे ये तो चूसने वाला है
जिसे तुम फाक कर रहे हो।।
ख्व़ाबों में चित्र देख रहे हो।
और जवानी लूटा रहे हो।
लड़ खाड़ाते हाथो से भी
क्यों जाम पिये जा रहे हो।।
तकदीर ने भी मेरी
देखो खेल कैसा खेला।
होकर दिल रुबा भी
औरों से कैसा नाता जोड़ा।।
पीता रहा गम उस दौर में
जब पीकर मस्त रह सकता था।
अब जिंदगी पर हँसता हूँ
बस देखो जाम को पीकर।।
दिल की पीड़ा को
वो महसूस किये थे।
पर हम उनको
समझ न सके थे।
हम तो है बेशर्म
जो उनको पी गए।
अब किससे शिकायत करें
जब नसीब खुदका खोटा हो।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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