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"सिद्धांत नहीं संबल चाहिए"

"सिद्धांत नहीं संबल चाहिए"

पंकज शर्मा
यह शाश्वत सत्य है कि मानवीय संबंध केवल उपदेशों या ज्ञान के आदान-प्रदान से नहीं, अपितु सहानुभूति और तत्क्षण सहयोग की भूमि पर पल्लवित होते हैं। जब जीवन की विपत्तियाँ किसी को घेर लेती हैं, तब उसे दार्शनिक व्याख्यान नहीं, अपितु सक्रिय संबल की आवश्यकता होती है। डूबते हुए व्यक्ति को 'तैरने के सिद्धांत' का पाठ देना समय का अपव्यय और कर्म का अनादर है। इस निर्णायक क्षण में, हमारा परम धर्म करुणा से प्रेरित होकर, बिना किसी विलंब के, सहायता का हस्त आगे बढ़ाना है। यह सहयोग की संस्कृति ही मानव समाज की वास्तविक पूँजी है, जो हमें नैतिक ऊँचाई प्रदान करती है।


आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो, यह सूक्ति निष्काम कर्म और सेवा धर्म के मर्म को उद्घाटित करती है। संकट के समय ज्ञान देना स्वयं के अहम् को पोषित करना है, जबकि मूक सेवा करना ईश्वरीय इच्छा का पालन करना है। जीवन की भंवर में फँसे किसी प्राणी का उद्धार करना, समस्त ग्रंथों के सार से बढ़कर है। निःस्वार्थ भाव से किया गया तत्काल सहयोग ही वास्तविक आध्यात्मिकता है। यह हमें सिखाता है कि मनुष्यता का सार केवल विचारों में नहीं, अपितु सार्थक क्रियाओं और शुद्ध हृदय के कर्मठ समर्पण में निहित है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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