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शाम हुई रंगीन

शाम हुई रंगीन

फूलों के रंग प्रेमिका के संग।
जिससे रंगीन हो गई महफ़िल।
क्योंकि साथ है संगनी जैसी वो।
इसलिए रात हो गई रंगीन।।


हँसता खिल खिलता उसका चेहरा।
फूलों के जैसा खिल उठा।
उसे देखकर मेरा भी दिल।
उसी तरह से खिल उठा।।


दोनों का अंदाज एक सा दिखा।
जैसे फूलों और फल का दिखता है।
जो ऊपर से हरा-हरा दिखता है।
पर अंदर से तो वो पका हुआ है।।


मोहब्बत करने वालों की तो।
बातें बहुत अलग ही होती है।
जो दिखती तो कुछ और है।
पर दिलवालों की बात ही अलग है।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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