प्रकृति से प्रीत
अरुण दिव्यांशमानवता का है रीत यह ,
पावन प्रकृति से ये प्रीत ।
मानवता से प्यार जिसे ,
प्रकृति बना प्रिय मीत ।।
मानव है प्रकृति प्यारा ,
मानवता ही जीवन गीत है ।
सुप्रभात जो बोले मुख से ,
पावन प्रेम उसका जीत है ।।
प्रकृति से रख रख लो प्रीत ,
जीवन सुलभ होता नित है ।
प्रकृति के हम बनें सेवक ,
सेवकाई में हमारा हित है ।।
प्राकृतिक प्रदूषण है फैला ,
प्रकृति नहीं मानव कृत है ।
जबतक है प्रकृति प्रदूषित ,
तबतक मानव यह मृत है ।।
प्रकृति हमारा प्यारा जीवन ,
प्रकृति ही प्यारा अमृत है ।
प्रकृति से ही हम सुरक्षित ,
प्रकृति जीवन हेतु घृत है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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