पर्यटन , देशाटन
अरुण दिव्यांशपर्यटन दिलवालों पैसेवालों का ,
चोरों का है और चाण्डालों का ।
गरीबों हेतु तो भोजन ही काफी ,
पर्यटन गरीब लूटने वालों का ।।
पर्यटन नेताओं अभिनेताओं का ,
कवि साहित्यकार वेत्ताओं का ।
पर्यटन उसी का जिसका चाॅंदी ,
नेतृ अभिनेत्री बहन माताओं का ।।
गरीबों को है पेट से नहीं फुर्सत ,
कहाॅं से बनेगा वह टाटा रतन ।
शहर जाने को होते पैसे नहीं ,
कैसे करेगा ये निर्धन पर्यटन ।।
पर्यटन हेतु तो चाहिए रिश्वत ,
बिन नौकरी रिश्वत है कहाॅं से ।
हो नहीं पाए देश का तीर्थाटन ,
बिन पैसे हो बिदाई जहाॅं से ।।
दवा हेतु तो पैसे नहीं हैं होते ,
बिन पैसे अब दुआ न मिलते ।
गरीबों की हो बिदाई जहाॅं से ,
अमीरों के दिल तब खिलते ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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