( यह रचना हमारे साहित्य गुरु परम आदरणीय स्व डॉ जख्मी कांत निराला जी के चरणों में समर्पित है । )
अगर तुम न होते
अरुण दिव्यांशधन्य हमारे आप साहित्य गुरु ,
आप न होते तो मैं कहाॅं होता ।
पा रहा हूॅं कृपा फल आपके ,
अन्यथा स्थिर होता मैं खोंता ।।
खल रही आज अनुपस्थिति ,
आज दिल मेरा बहुत है रोता ।
आपके बिन बहुत मैं पीड़ित ,
जैसे दिल कोई सूई चुभोता ।।
मिले न होते मुझको आप तो ,
आज भी बबूल बीज मैं बोता ।
मिले न होते मुझको आप तो ,
काव्य में कैसे लगाता गोता ।।
चल रहा हूॅं मैं आपके मार्ग पे ,
काव्य साहित्य माथे हूॅं ढोता ।
बरसता रहे आशीष आपका ,
चरणों में मैं हूॅं शीश झुकाता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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