ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य का महाद्वार: देवगुरु बृहस्पति
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में, सप्ताह के दिनों का केवल कालचक्र नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक महत्व है। इन सात दिनों में, बृहस्पतिवार (गुरुवार या वीरवार) एक अद्वितीय स्थान रखता है। यह दिन न केवल ज्ञान, धर्म और समृद्धि के अधिष्ठाता देवगुरु बृहस्पति को समर्पित है, बल्कि यह संसार के पालनकर्ता भगवान विष्णु के साथ एक अटूट बंधन का प्रतीक भी है। देवगुरु बृहस्पति हिंदू धर्म के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली देवताओं में से एक हैं। वह केवल एक ग्रह नहीं हैं, बल्कि देवताओं के पुरोहित, गुरु और मुख्य सलाहकार हैं। ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि अंगिरा की पत्नी सुरूपा ( स्मृति) से वृहस्पति का जन्म हुआ था। तपस्या और गुरु पदवी: जन्म के समय उनका नाम जीव था। समस्त वेदों और शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उन्होंने प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी 'बृहत् तपस्या' (महान तपस्या) से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वरदान दिया कि वे बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध होंगे और देवताओं के गुरु (देवगुरु) का पद प्राप्त करेंगे। ज्ञान और धर्म के प्रतीक: बृहस्पति को शील, ज्ञान, अध्यात्म, और धर्म का साक्षात अवतार माना जाता है। वह देवताओं का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें धर्म के मार्ग पर स्थिर रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु वृहस्पति नवग्रहों के नायक , नवग्रहों में सबसे शुभ और प्रभावशाली ग्रह (Jupiter) माना जाता है। वह कुंडली में ज्ञान, बुद्धि, संतान, विवाह, भाग्य और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं । बृहस्पति का पारिवारिक जीवन भी अत्यंत समृद्ध रहा है। उनकी तीन प्रमुख पत्नियाँ और उनसे हुई तेजस्वी संतानें पौराणिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । वृहस्पति की पत्नी शुभा पौत्र एवं मरुत एवं वानर संस्कृति के जनक केसरी के पुत्र हनुमान जी , पत्नी ममता के पुत्र ज्ञान और ऋषित्व संस्कृति के जनक भारद्वाज , संजीवनी विद्या के ज्ञाता कच पुत्र एवं भानुमति पुत्री और पत्नी तारा के पुत्र चंद्र से संबंध के कारण बुध (ग्रह) के जनक तथा तारका युद्ध और ज्योतिषीय ग्रह बुध का संबंध है। ज्ञान और समृद्धि का पावन दिवस सप्ताह में गुरुवार का दिन विशेष रूप से इन्हीं दो महान शक्तियों—देवगुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु—को समर्पित है। यह दिन जीवन में सकारात्मकता, स्थिरता और आध्यात्मिक प्रगति लाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है: गुरुवार को सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन उनकी आराधना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी कष्टों का निवारण होता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से कुंडली में गुरु ग्रह (Jupiter) की स्थिति मजबूत होती है, जिससे जातक को उत्तम शिक्षा, सौभाग्य और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
पीला रंग बृहस्पति और भगवान विष्णु दोनों को प्रिय है। यह ज्ञान, आशावाद और शुभता का रंग है। गुरुवार को पीले वस्त्र पहनना, पीले फूल अर्पित करना और पीली वस्तुओं (जैसे चने की दाल) का सेवन करना शुभ माना जाता है।गुरुवार की पूजा में केले के पौधे का एक विशेष और अभिन्न स्थान है। बृहस्पति का वास: ऐसा माना जाता है कि केले के पौधे में स्वयं देवगुरु बृहस्पति का वास होता है। भक्त इस दिन केले के पौधे के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। पौधे को हल्दी का लेप लगाया जाता है, जल या दूध अर्पित किया जाता है, और पीले फूल, चने की दाल और गुड़ चढ़ाए जाते हैं।इस पूजा से संतान सुख, विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण, दरिद्रता का नाश और घर में स्थायी सुख-शांति की प्राप्ति होती है। हालांकि, व्रत रखने वाले भक्त केले का फल नहीं खाते हैं। गुरुवार को की गई पूजा व्यक्ति के जीवन को धर्म, ज्ञान और धन से परिपूर्ण करती है। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और पीले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए । भगवान विष्णु/बृहस्पति देव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि केले का पौधा घर में है, तो वहीं पूजा करें। हल्दी (रोली), पीले फूल, चने की दाल और गुड़ अर्पित करें। बृहस्पति देव या भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करें। दीपक और मंत्र: घी का दीपक जलाएं और "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः" (बृहस्पति मंत्र) या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" (विष्णु मंत्र) का जाप करें। ज्ञान और बुद्धि स्मरण शक्ति, शिक्षा और बुद्धि में वृद्धि होती है। वैवाहिक जीवन विवाह में विलंब या बाधाएं दूर होती हैं; वैवाहिक जीवन में सुख और सामंजस्य आता है। समृद्धि और धन गुरु ग्रह की कृपा से अचानक धन लाभ और आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है।स्वास्थ्य उदर (पेट) संबंधी और पाचन संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। सौभाग्य जीवन के हर क्षेत्र में भाग्योदय होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। बृहस्पतिवार (गुरुवार) भारतीय धर्म, ज्योतिष और संस्कृति का वह आधार स्तंभ है, जो मनुष्य को ज्ञान (बृहस्पति) और संरक्षण (विष्णु) के संयुक्त आशीर्वाद से जोड़ता है। यह दिन स्मरण कराता है कि जीवन में वास्तविक समृद्धि केवल धन से नहीं, बल्कि धर्म, विवेक और सद्गुण से आती है, जिसके प्रतीक स्वयं देवगुरु बृहस्पति हैं। गुरुवार को सच्ची श्रद्धा से की गई उपासना जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य और अटूट स्थिरता लाती है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com