"अहं की छाया एवं स्व का प्रकाश"
पंकज शर्मा
अहंकार - मिथ्या ऊँचाई का पतन
अहंकार वस्तुतः मिथ्या 'मैं' का एक गढ़ा हुआ शिखर है, जो इंद्रियों एवं क्षणिक सफलताओं के भ्रमजाल पर टिका होता है। यह एक काल्पनिक ऊँचाई है, जहाँ से व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानकर शेष जगत को तुच्छ समझने लगता है। यही दर्प उसे अपने मूल, अपनी विनम्रता के धरातल से विमुख कर देता है। अहंकारी मन नवीन ज्ञान के प्रति अपने कपाट बंद कर लेता है, जिससे उसका बौद्धिक एवं आत्मिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। यह संकीर्णता उसे सामाजिक सौहार्द एवं सहयोग से काट देती है, जिसके फलस्वरूप उसका पतन सुनिश्चित हो जाता है। यह विमुखता व्यक्ति को क्षणिक सुख भले ही दे, किंतु अंततः यह आंतरिक रिक्तता एवं विनाश की ओर ले जाने वाला एक मार्ग है।
स्वाभिमान - आंतरिक शक्ति का उत्कर्ष
प्रिय मित्रों इसके विपरीत, स्वाभिमान व्यक्ति के सत्य एवं मर्यादा पर आधारित वास्तविक आंतरिक शक्ति है। यह आत्म-सम्मान की वह दृढ़ भित्ति है, जो व्यक्ति को नैतिक मूल्यों से समझौता किए बिना जीवन के संघर्षों में अडिग रहने की प्रेरणा देती है। स्वाभिमान की उपस्थिति में विनम्रता एक आभूषण की भाँति सज्जित होती है; क्योंकि स्वाभिमानी जानता है कि उसका महत्व उसकी आंतरिक गुणवत्ता में निहित है, न कि बाह्य दिखावे में। यह शक्ति उसे ज्ञान एवं उत्कृष्टता की ओर निरंतर गतिशील रखती है। स्वाभिमान ही वह प्रकाश है जो संकीर्ण 'अहं' (Ego) के तुच्छ घेरे से परे महान 'स्व' (True Self) के विशाल आकाश तक पहुँचाता है, जहाँ चरम उत्कर्ष एवं सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त होती है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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