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उसे देख, खिले प्रणय सुमन सजीले

उसे देख, खिले प्रणय सुमन सजीले

कुमार महेन्द्र
मुखमंडल कमल प्रतिष्ठा,
दृष्टि अंतर प्रीत अथाह ।
भाव भंगिमा चारु चंद्र सम,
उभार बिंदु अमिय प्रवाह ।
चाल ढाल चंचल मयूरी,
नयनन मादक बिंब रंगीले ।
उसे देख,खिले प्रणय सुमन सजीले ।।


परिधान अंतर कुसुम सौरभ,
आत्मिकता चरम बिंदु ।
सरस मधुर संवाद संप्रेषण,
शर्म संकोच नैसर्गिक सिंधु ।
रूप अनुपमा सम्मोहिनी,
हिय मिलन भाव छबीले ।
उसे देख,खिले प्रणय सुमन सजीले ।।


बिंदी सिंदूर छटा मनोहारी,
चूड़ी पायल मधुर खनक ।
स्वर मधु रस अर्णव,
शब्द संकेत खुशियां जनक ।
अंग अंग कमनीय उषा,
तृप्ति आतुर अधर रसीले ।
उसे देख,खिले प्रणय सुमन सजीले ।।


केश लहर निशि वरण,
शील सौम्य हाव भाव ।
अंतःकरण नेह हिलोर,
मस्त मलंग प्रेम नाव ।
देह सौष्ठव गंगा सी निर्मल,
प्रतीक्षा काल चक्षु गीले ।
उसे देख,खिले प्रणय सुमन सजीले ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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