मत काट रे मानव मुझे
अरुण दिव्यांशमत काट रे तू मानव मुझे ,
सच कहे सब दानव तुझे ।
अपनी कोई परवाह नहीं ,
अक्ल न दिए माधव तुझे ।।
मुझे संभाल जीवन निखरे ,
मुझे काटो जीवन बिखरे ।
मैं कटकर अकेला जाऊॅं ,
तेरे जीवन चिथड़े चिथड़े ।।
मेरे बिन कहाॅं फल छाया ,
तेरे जीवन हेतु मैं हूॅं आया ।
मेरे बिन कहाॅंं संभव जीना ,
मेरे बिन न निर्मल काया ।।
मानव का अरि मानव हुए ,
मैं कहाॅं फिर हूॅं बचनेवाला ।
राष्ट्र अरि राष्ट्र में है निर्भिक ,
अपनों पे षड्यंत्र रचनेवाला ।।
मैं तेरा जीवन मैं तेरा रक्षक ,
तू मेरा अरि मृत्यु के कायल ।
तू मरेगा तो केवल एक ही ,
मैं मरा तो सृष्टि होगी घायल ।।
ईश ने भेजा बना तेरा रक्षक ,
तुम्हीं बने हो मेरे बड़े भक्षक ।
मेरा जीवन है तेरे जीवन हेतु ,
तुम्हीं मुझे डॅंसनेवाले तक्षक ।।
जब बंद करोगे मुझे काटना ,
औ मुझे हरा भरा तुम करोगे ।
मैं दूॅंगा तुझे ये आजीवन सेवा ,
तुम आजीवन हरे भरे रहोगे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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